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( १०७ } को दान दिये तथा सारे कृत्य किये और दस दिन तक अत्यन्त आनन्द पूर्वक उत्साह मनाया १ पुत्र का जन्म सुनकर सोमेश्वर ने हाथी, घोड़ों और वस्त्रों द्वारा बधावा दिया तथा उत्साह शौर. यानन्द से पूर्ण होने के कारण राज के मुख की कान्ति बढ़ गई । तदुपरान्त उन्होंने लोहाना और चंद को बुलाकर ननिहाल में इन्द्र को अजमेर लाने के लिये कहा । फिर नरेश ( स्वयं ) उत्साहपूर्वक सहस्त्र हाथी, घोड़े, सुभट और सौ दासियों सहित १ पुत्र को लेकर } अजमेर चले ।४ विक्रम के १११३ अानन्द शाका में शत्रुओं को जीतने वाले और उनके पुरों का हरण करने वाले नरेन्द्र पृथ्वीराजे उत्पन्न हुए।५ सहावाहु- सोमेश्वर के पूर्व जन्म की तपस्या के गुण से और उनके पुण्य के कारण जगत् विजयी पृथ्वीराज का जन्म हुआ ।६ अनंगपाल की पुत्री ने पुत्र को प्रसव किया मानो घनी मेघमाला में दामिनी दमक उठी । राव ने सोमेश्वर को बधाई दी जिन्हें एक सहल सुवर्ण मुद्रायें और एक अश्व दिये जाने की आज्ञा हुई। एक ग्राम, एक घोड़ा और एक हाथी उन्होंने अपने परिग्रह ( मैं इत्येक } को देकर प्रसन्न किया, दरबार में नगाड़ों का तुमुल नाद होता था मानो बादलों को गर्जन हो अथवा समुद्र में उत्ताल तरंगों का शब्द, हो। पुत्र को धराकर राजा ने उसका सुख देखी और उसे अपने पूर्व कर्मों का फल जाना । विद्वान् ब्राह्मणों की सहायता से शिशु के वेदोक्त और शास्त्रोक्त जात-कर्म किये । मंगलाचरण करके नृत्य प्रारम्भ हुए जिनमें अप्सरा सदृश अाताप ने देवलोक की अनुभूति कराई । अनोस पुत्रि हुअ पुत्र जन्म । बिज्जले चमकि अनु मेघ घन्म !! बद्धाइ राव सोमेसे दीन । इक सहस हेम हय हुकम कीन ।।६६७ दिये ग्राम एक हय इक्क हेथ्य } परिग्रह प्रसाद सह कीन तथ्थ ।। नसन बाजि दरबार जोर । घन उर्ज जान दरिया हिलोर ।।६६८ पधाइ इ मुष दरस कीन् । क्रित क्रम्म पुब्ब फल मान लीन ।। करि जात क्रम्म मति ग्रंथ सोधि । वेदोक्त विप बर बुद्धि बोधि ।। ६६९ मंगल उच्चार करि नृत्य गान अछछरि अलाप सुर भुवन जान ।। ७०० ( १ ) छं० ६६०; ( २ ) ॐ० ६६१; ( ३ ) छं० ६६३; (४) छं ६६३; (५ } ॐ० ६६४; (६ ) छं० ६६६ ।। | टिप्पणी-छं० ६६२ प्रदिप्त है क्योंकि चंद ने अपना जन्म पृथ्वीराज के साथ ही लिखा है। उक्त वक्तव्य के आधार पर उसका नवजात पृथ्वीराज को लेने जाना असम्भव है।