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( १३४ ) अभिराम होता है। इसके उपरान्त उन्होंने 'रासा छन्द के नियम दिये हैं कि इसमें इक्कीस सात्रायें, अन्त में तीन लघु और चौदह मात्राओं के बाद थति होती है। प्राचार्य हेमचंद्र के छन्दोनुशासनम'3 तथा अज्ञात रचना कविदर्पणम्'४ के रासावलय’ नामक : छन्द तथा रत्नशेखर दूरि के छन्द: कोश:'५ के ‘आहाण' ( अभाणक » छंद के नियम सा से मिलते हैं जिससे ये एक छन्द के ही भिन्न नाम प्रतीत होते हैं । अइहमा के संदेश-रसक' छंद २६ की व्याख्या में अहाण' का दूसरा नाम “रासउ भी मिलता है १६ इस विषय में जर्मन विद्वान् डॉ० आल्सॉफ भी इसी निर्णय पर पहुँचे हैं।७ भानु जी ने बाइको मात्रा वाले ‘महारौद्र’ समूह के जिस स’ छंद का उल्लेख किया है वह ‘स से भिन्न है ।८ । । “पृथ्वीराज-रासो' में रासा' छंद पाँच स्थलों पर प्रयुक्त हुअा है । १. पत्ता छबुडणिश्राहि पद्धडिअर (हिं) सुझण्णरूएहिं । साबंधो कब्ने जणमा अहिरामश्रो होइ ॥२-४८; २, एकवीस मन्ता हिउ उद्दामग्रुि वरदाई विस्सीम हो भगण विरइ थिरु रासबंधु समिद्ध एड श्रहिरामअरु ल हुअतिअतिअवसाबिरइअमहुर अरु ।। ८-५० ; ३. घऽजचः प्रपौ रासलियम् । ५-२६ तथा उदाहरण छन्द ३४; ४, सोवलयं यो अजट: पस्तश्च-दस्तुवदने तु । पण अजटो मझकटगण अज़दश्च पगणश्च {} }, २५; ४० बी० ओ० अार6 ई०, जिल्द १६, भरि १-२, पृ० ** ; ५, मत्त हुई चउरासी चउपइ दारिकत तेसठ जोणि निबंधी जाणहु चहुयदल } पंचकलु बज्जिज्जहु गणु सुठुवि बाण सोवि अहाउ छदु जि महियलि बुह मुहु ।। १७ ; . ६, भन्ने होहि चरासी चहुपथ' चारि कत से सठि जोएि निबद्धी जाणुहु बहुअ दल । ,' पंचकलु बज्जिहु गणु सुद्धि वि गगृहु : । सावि अाहा छंदू के वि सिउ मुणहु ।। ; 18, अपश सबिन, ( अर्मन ), पु० ४६; .. ६. ६: अभ्ाक्ष, ४० ५६ । ६.० स०.५०; ॐ १२; स७ ५७, ० १६३ ३१, ७. १६३२०३४