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( १३५ ) ‘रासा छन्द र सो' काव्य भले ही सीधे सम्बन्धित न हों परन्तु बिरहाङ्क और स्वयम्भु के रासावंध? अवश्य ही उससे छन्दों के अनुशासन के कारण अधिक सुम्पक में हैं । यद्यपि ये दोनों विद्वान् ‘सार्वधु' के छन्दों के विषय में मतैक्य नहीं रखने फिर भी इतनी त कहा जा ही सकता है कि एक समय रासा या रासो काव्यों में अनेक विशिष्ट छन्दों का व्यवहार इष्ट होकर शास्त्रोक्त हो गया था। और छन्दों की विविधता, केदारा राग में गाये जाने वाले, आदि से अन्त तक एक छन्द में प्रणीत गीत-काव्य 'बीसलदेव रासो तथा दो चार अंर को छोड़कर शेष सभी रासो-ग्रंथों में मिलती है ।। चारणों, भाटों तथा जैन कवियों द्वारा रास और रास नाम से विविध विषय और रस वाले अनेक काव्य लिखे गये जिनका अध्ययन पृथ्वीराजरासो' के परिदृश्य को समझने में सहायक होगा । | अपभ्रंश में वारहवीं शती के अनेक रस-काव्य मिलते हैं । दुःखान्त , प्रबन्ध काव्य ‘सु जरास’ के फुटकर छन्द ( जिनके प्रकार और संख्या अज्ञाद हैं । 'सिद्ध हेमशब्दानुशासनम्' तथा 'प्रबन्ध-चिन्तामणि' (मेरुतुङ्ग) में मिलते हैं, जो मालवा के राजा मंज और कर्नाटक के राजा तैलप की बहिन मृणालवती की कथा से सम्बद्ध हैं। कवि अ६हमाण ( अब्दुल रहमान ) के सं० १२०७ वि० के सुखान्त प्रवन्ध काव्य सन्देश रसिक में ३२ प्रकार के २२३ छन्द हैं तथा एक प्रतिपतिका की विरह-वर्णन इसका विषय है। शाः लिभद्र सूरि की सं० १९४१ वि० का सर बाहुबलि रास वीर रसात्मक ग्रन्थ हैं, जिसके २०३ छन्दों में भगवान् ऋषभदेव के दो पुत्रों भरतेश्वर और बाहुबलि की राज्य के लिये संघर्ष वर्णित हैं तथा ६३ छन्दों वाला शान्त रस विधायक उनका दूसरा झुन्थ बुद्धि रास’ हैं। रहवीं शताब्दी के कवि असा कृत जीव दयारास ३ तथा ३५. छन्दों वाला चंदनबाजारास४ हैं । जिनदत्तदूरि के उपदेशरसायनरास५ में एक ही प्रकार के छन्द में शान्त रस की ८० चतुष्पदियाँ हैं, जिनमें जैन धर्माचार का १. भारतीय विद्या, बंबई : ३. वही ; ३. वही ; ४. राजस्थान भारती, भगि ३, अंक ३-४, जुलाई १६५३ ई०, ५. अपभ्रंश काव्यत्रयी, गायकवाड़ ओरियन्टल सीरीज़, संख्या ३२;