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कीर्तिलता’ १ की कथा निर्दिष्ट श्रोत-वक्ता पद्धति र शृङ्गः की जिज्ञास पर भृङ्ग द्वारा कहलवाई है। । र सो में शुक और शुकी तीन रूपों में आते हैं-कथा के श्रोतः और वफ़ा होकर, प्रणय-दूत वनकर तथा सपत्नियों के मध्य में धृष्ट दूतत्व करते हुए । अन्तिम रूप में केवल शुक कार्य करता है । श्रेता और वक़ो रूप में शुकशुकी के प्रथम दर्शन रासो के कन्हपट्टी समय ५' में होते हैं । शुकी, नृथ्वीराज और भीमदेव चालुक्य के बैर को कारण पूछती है : सुकी कहै सुक संभ, कहौ कथा प्रति मान् ।। पृथु भो भीसंग पहु, किम हुआ वैर बिनान ।। १, और शुक, चालुक्य से बैर का कारण बिना किसी अन्य भूमिका के कह चलता है परन्तु न तो अगले छन्द २ में ही उसका उल्लेख होता है और न कहीं ‘समय की समाप्ति पर हीं। इसके उपरान्त अर्घटक वीर वरदान', नाहर राय कथा', मेवात मुरात कथा, और हुसेन कथा' के बर्णन अाते हैं। केवल ‘हुसेन कथा ससय ६' के आदि में कोई अज्ञात वक्ता ( भले ही वह शुक हो परन्तु कवि पत्नी अादि की भी सम्भावना है) से भरेश चौहान और राजनीपति शाह के आदि बैर की उत्कंठापूर्ण कथा कहने का निर्देश करता है : संभरि वै चहुशांन हैं, अरु गज्जन वै साह ।। कहाँ आदि किम बैर हुञ, अति उतकंठ कथाह ।।१।। इसके बाद खेटक चूक वर्णन समय १०' अाता है । तदुपरान्त ‘चित्ररेषा समयौं” में चंद से कोई ( संभवतः कवि-पत्नी या पृथ्वीराज अादि ) सुन्दरी चित्ररेखा की उत्पत्ति और हुसेन हाँ द्वारा अश्यपति ( ग़ौरी ) के यहाँ से उसकी प्राप्ति विषयक प्रश्न करता है : १, भङ्गी पुच्छइ भिङ्ग सुन की संसारहि सार । मानिनि जीवन मानः सञ वीर पुरुष अवतार ।। प्रथम पल्लव, किभि पन्न” कैरिपए किन उद्धरिङ तेन । पुण्ण कहाणी पिञ कहहु सा मिञ सुनु सुहेण || द्वितीय पल्लव, . कण्ण समाइअ अमिञ रस तुज्झु कहते कन्त ।। कहहु विअखण पुनु कहहु तो अपिबाम वितन्त ।। दृतीय पल्लव, कह कह कन्ता सन्चु भन्ता किमि पर सेना सच्चरिं! किमि तिरहुत्ती होउँ पवित्ती, अरु असलान किक्कर ।। चतुर्थ पल्लव;