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दुज सम्म दुजी सु उझरिय ; ससि निसि उज्जल देस ।। किस तूअर पाहार पहुं । गहिय सु असुर नरेस ।। १ प्राचार्य द्विवेदी जी की अनुमान है कि मूल रासो में शुक और शुकी के बार्तालाप-ढंग के अन्तर्गत शहाबुद्दीन के आने का यह प्रथम अवसर है। पैंतालिस ‘संयोगिता पूर्वजन्म प्रस्ताव में इन्द्र की प्रेरणा से जयचन्द्र और पृथ्वीराज के वैर की कथः कः सूत्रपात एक गन्धर्व द्वारा होता है। गन्धर्व शुक-वेष में कन्नौज जाता है और रात्रि में मदन ब्राह्मणी के घर जहाँ संयोगिता पढ़ती थी, जाकर ठहर जाता है तथा उक्त नगरी का माहात्म्य अनुभव करता है ( छं० ५१-५२ ) । गन्धव, संयोगिता का राजा के घर में जन्म लेने का वृत्तान्त पूछती है (छं० ५३ } | वह उत्तर देता है कि संयोगिता अप्सरा का अवतार है और सुमन्त मुनि के ( कारण ) आप से शूरों का संहार करने के लिये जन्मीं है ( छं० ५४ }। तदनन्तर शुक कहता है कि हे शुकी, जिस प्रकार अप्सरा ने मुनि को धोखे से छला था श्रौर जिसके कारण उसे श्राप मिला, वह सुनो : सुकी सुनै सुकउञ्चरे । पुब्ब संजोय प्रताप ।। जिहि छर अच्छर मुनि छर्यौ । ज़िन त्रिये भयो सराप ।। ५५, यहाँ शुकं और शुको वार्तालाप के प्रसंगानुसार गन्धर्वगन्धर्वी हैं । कन्नौज क; रांजकुमारी संयोगिता का अाल्याने यहीं से प्रारम्भ होता है । देवलोक की -मंजुचौ : (: जिले छं० ७५ में रम्भा भी कहा गया है ) देवराज की आज्ञा से सलोक के सुमन्त ऋघि को तपस्या भंग करने के लिये आती है { छं० ७४ } और अपने संगत द्वारा वह ऋषि की समाधि भर करती हैं तथा उसके रूप लावण्य और भाव-विलास को देखकर ( छु० ७७-६६ }, मुनि आश्चर्यचकित हो जाते हैं ( छं० ६७-६६) तथा जप-तप का मोह छोड़कर कामात हो उसकी हाथ पकड़ लेते हैं, जिसे हँसी के साथ छुड़ाती हुई वह अन्तद्धन हो जाती है । ॐ० १०० }। मुनि भूच्छित होकर क्षश भर के लिये गिर पड़ते हैं परन्तु फिर अपने दिल को सँभाल कर ध्यान मग्न हो जाते हैं (छं० १०१-२) । यहीं पर शुकी, शुक से मुनि का मन डिगानेवाली अप्सरा के सौन्दर्य का वर्णन पूछती हैं : . सुकी सुकहं पुच्छै रहसि । न सिष बरनहु ताहि ।। जा दिन मुनि भन टरयौ । रह्यौ टगट्ट चाहि ।। १०३, और इस मिस से कवि को रमणी-रूप वर्णन का एक अवसर मिल जाता १, चही, पृ० ६४;