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भहाभारत की नल-दमयन्ती कथा से अनेक परवत कवियों ने प्रे वाई, जिसके फलस्वरूप संस्कृत में नलोदय' (कालिदास १ नवीं शती के केरल कवि वासुदेव १), ‘नल-विलास’ (नाटक) रामचन्द्र, बारहवीं शती, नैषधीय चरितम्' (श्रीहर्ष, बारहवीं शती), 'नल-चरित ( नीलकंठ दीक्षित, सन् १६५० ई० }, नल-राज’ ( तेलुगु } [ राघव, सन् १६५० ई० 1 प्रभाते काव्य विशेष प्रसिद्धि में अाये । 'नलोयु' को छोड़कर शेष सभी में हंस की कथा कतिपय मौलिक सन्निवेश सहित देखी जा सकती है। बारहवीं शती के सोमदेव के *कथासरित्सागर' में वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त को दो स्वर्ण हैस पार्वती द्वारा अपने पाँच गणों को श्राप की कथा सुनाते हैं तथा अपने को इन पाँच में से पिंगेश्वर और गुहेश्वर उराण बतलाते हैं । ‘कथासरित्सागर' तक आते-आते भारतीय काव्य-परम्पर में स्त्री-राग पहले दिखाने की रूढ़ि स्थान पा चुकी थी। इसकी नल-दमयन्ती कथा में दिव्य हंस पहले दमयन्ती द्वारा वस्त्र फेंक कर पकड़ा जाता है और यह नल का रूप-गुणानुवाद करके उनसे विवाह करने की सलाह देता है तथा प्रणय-दूत बनने के लिये प्रस्तुत हो जाता है । मल भी इस हंस को दमयन्ती की युक्ति से पकड़ते हैं, तब वह विदर्भ-कुमारी का सौन्दर्य बखान कर कहता है कि मैंले ही आपके प्रति उसे आकृष्ट किया है। नज़ कहते हैं कि दमयन्ती द्वारा मेरा चुनाव, मेरी शान्तरिक अभिल। प्राओं का प्रतीक है । हंस लौटकर दमयन्ती को यह सब समाचार दे आता हैं । * अल-दमयन्ती कथा का विस्तार से विवेचन यहाँ यह दिखाने के लिये किया गया है कि कवियों को उक्त कथा के अन्य गुणों के अतिरिक्त हंस का दूत कार्य विशेष रूप से इष्ट था । अब अप्रतिम नल-दमयन्ती कथाकार श्रीहर्ष के काव्य और कथा की दृष्टि से अलौकिक महाकाव्य नैषधीयचरितम्” में भी हँस के प्रणय-दूतत्व पर किञ्चित् दृष्टि डाल लेनी चाहिये । स्त्री-रोग के प्रथम दर्शन सिद्धान्त के अनुसार पूर्व दमयन्ती और फिर भल' रूपगुणानुवाद सुनकर परस्पर आकर्षित और अनुरक्त हो चुके हैं । वन के सचर में भल ने जब स्वर्ण हंस को पकड़ लिया और पुन: उसके मानव-वाणी में विलाप तथा याचना करने पर उसे मुक्त कर दिया, तब तो अपने विश्वास और प्रीति का पात्र पाकर उसने राजा से दमयन्ती को सौन्दर्य-वर्णन करके १. श्लोक ३३-३८, सर्ग १; २. श्लोक ४२-४६, वही; ३. श्लोक १२५-४३, वही;