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भान की सुन्दरी कुमारी एर कामासक्त होकर, शिशुपाल-वंशी बँदेरीपति पंचाइन, राजकन्या से विवाह या राज्य-हरण का प्रस्ताव श्रौर घुड़की देत है { छं० २-५ } । काम-लिप्सा के नग्न प्रदर्शन में निहित यह ललकार राजा भान का क्षत्रियत्व जगा देती है और वह पंचाइन को कोर-करारा जवाब दे देता है ( छ० ६-७ ), जिसके फलस्वरूप पंचाइन शाह रोरी की सहायता लेकर रणथम्भौर को अ बेरता है ( छं० ८-१८) । इस पर भान दिल्लीश्वर चौहान से सहायता की याचना करते हैं ( छं० १९-२० ), और पृथ्वीराज भान वीर पुक्कार, धा३' आई दिल्लीबै समाचार कन्ह द्वारा कातक राइ कप्पन विरद चित्तौड़ के रावल के पास भेज देते हैं ( छं० २१-२२ }। अत की पुकार और शरणागत का दैन्य, दिल्ली तथा चित्तौड़ की सहायता ले आते हैं (छं ३६ )। फिर मृदंग की भाँति शत्रु को पूर्व और पश्चिम दो श्रोर से दबाये हुए, उस भयंकर युद्ध में कमनीय भूति पराक्रमी चौहान विजयी होते हैं ( छं० ४०-८५ )। विजय की रात्रि में पृथ्वीराज एक हंसर मिनी और मानिने सुन्दरी को पुरुप लिये हुए देखते हैं: हंस सुपति माननी । चंद जमिनि प्रति घट्ठी ।। इक तरंग संदरि सुचंग । हथ नयन प्रगट्टी ।। हंस कला अवतरी । कुमुद वर फुल्लि समथै ॥ एक चित सोइ बाल | मीत' संकर अस थ्र्थे । तेहि बाल संग में एडु लिय / बरन बर संगति जुवह ।।। जाग्रत देवि बोलि न कछु । नवह देव नन मानबह ।। ८६ यहाँ पृथ्वीराज के पास ‘श्रीमद्भागवत्' की योगमाया से अनिरुद्ध को सोते हीं उठा लानेवाली ऊषा की सखी चित्ररेखा सदृश कोई सखा था नहीं, अस्तु प्रात:काल राजा ने अपने चिर सहर कविचंद को अपना स्वम सुनाया। जिसे सुनते ही उसने कह दिया कि स्वम की अश्रत तथा अदृष्ट मी और कोई नहीं, आपकी अविध्य पत्नी राजकुमारी हंसावती है ( छं० ८७ )। तदुपरान्त दैवी प्रतिभा-सम्पन्न कवि उसका स्वरूप वर्णन करने लगा (छं० ८-६८)} इसी बीच में राजा भान का पुरोहित लग्न लेकर अ गया ( छं० ६६ )। पुरुषार्थी वीरों को इन परिस्थितियों में स्वाभाविक रूप से पुरस्कार स्वरूप सुन्दरियों की प्राप्ति का साक्षी मध्ययुगीन यौर को वीर-साहित्य भी हैं । परन्तु अबस्था विशेष में रक्षा के बरदान पर भी विचार झर लेने के साथ हमारा अभीष्ट यहाँ स्वस में प्रियु-दर्शन बिषयक कक्षा-सूत्र है।