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सुबल यदि पृथ्वीराज विषयक लोक-कथायें थीं तो शिक्षित जनता का कशठंहार चंद बरदायी कृत ‘पृथ्वीराज-सो' था, जिसकी छाप एक ओर जहाँ हिन्दी, गुजरात और राजस्थानी साहित्य पर थी वहाँ दूसरी ओर उसने राजपूताना के राज्यों के इतिहास को भी प्रभावित कर रखा था । बारहवीं शताब्दी में यद्यपि भारत में युद्ध और शासन को भार क्षत्रियों पर ही था परन्तु पृथ्वीराज की जये और पराजय जनता की अतः हिन्दुओं की जीत और हार थी । रासो में हिन्दू जनता को लक्ष्य करके ही चंद ने मानौं इस प्रकार के वर्णन किये हैं--- *हिंदू सेन उप्परै, साहि बजे रन जंग ।। पृथ्वीराज-रासो' की कीर्ति योरप पहुँचाने का श्रेय कर्नल टॉड (Colonel James Tod) को है। इस विद्या-मनीषी ने न केवल रासी के एक दीर्घ अंश का अंग्रेजी में अनुवाद किया। वरन् इस वीर-काव्य के आधार पर अपनी राजस्थान' नामक विख्यात इतिहास-ग्रन्थ लिखा । 'राजस्थान में उक्त नाम वाले प्रदेश के प्राय: प्रत्येक शासक वंश के पूर्व पुरुष का सम्बन्ध पृथ्वीराज और उनके रातो से पाकर प्राच्य विद्या-विशारद योरोपीय विद्वानों की इस महाकाव्य की और उन्मुख होना प्राकृतिक था । श्री ग्राउज़ (F. S. Growse)४, बीन्स (John Bearmes ) और डॉ० ह्योनले (Rev.Dr, १. हिन्दू सेना पर शाह ने भयानक धावा बोल दिया है ; २. राजस्थान, दो भाग, सन् १८२९ ३० ; दि वाउ अवि संजोगता, एशियाटिक जर्नल, ( न्यू सीरीज़ ), जिल्द २५ ; तथा कनउज खंड, जे० आर० ए० एस०, सन् १८३८ ई० ; । ३. इस्त्वार द ला लितरात्यूर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी, गास द तासी, प्रथम भाग, पृ० ३८२; त था ( हिन्दी ) टाड-राजस्थान, अनु० पं० रामगरीब चौबे, सम्पा० म० भ० ६ गौरीशंकर हीराचंद झा, भूमिका पृ० ३३; ४. दि पोइम्स अवि चंद बरदाई, जे० ए० एस० बी०, जिल्द ३७ भाग १, सन् १८६८ ई० ; फर्दर नोट्स अन प्रिथिराज रायसा, वहीं, भाग १, सन् १८६९ ई० ; ट्रांसलेशंन्स फ्राम चंद, वही ; रिज्वाइन्डर हु मिस्टर बीम्स, वही, भाग १, सन् १८७० ई० ; ए मेट्रिकल वर्शन अव दि ओपिनिंग स्टैंजाज्ञ व चंद प्रिथिराज सौं, वहीं, जिल्द ४२, भाग १, सन् १८७३ ई० ; तथा इंडियन ऐन्टीक्वेरी, जिल्द ३, पृ॰ ३४०; ५. दि नाइनटीन्थ बुक अत्रि दि जेस्टेस श्राव प्रिथीराज बाई चन्द