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कबिराज श्यामलदास के विरोधी तुर्की का उत्तर पं० मोहनलाल बिष्णुलाल पंड्या ने दिया । उदयपुर के बाबू रामनारायण दूधड़ ने पृथ्वीराज की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए रासों की त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित किया । मंशी देवीप्रसाद ने रासो की समीक्षा करते हुए लेख लिखा । बाबू श्यामसुन्दर दास ने चंद को हिंदी का आदि कवि निश्चित किया । बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी द्वारा रातो का काम बंद देवकर, नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने पं० मो० वि० पंड्या, बाबू राधाकृष्णदास, के वर कन्हैयः जू और बाबू श्यामसुन्दर दास द्वारा उसका सम्पादन करके प्रकाशित करा १७, मिश्रबन्धुश्चों ने चंद को हिंदी का आदि महाकवि और धृथ्वीराज का दरवारी माना । ६ महामहोपाध्याय पं० हरप्रसाद शास्त्री ने चंद के वंशवृक्ष पर प्रकाश डाला | ड० टेसीट; (D, L. P. T!essitoryने सो की दो बाचन की भावना की ओर संकेत किया |८ श्री अमृतलाल शील ने देवगिरि, मालवा, रणथम्भौर आदि के प्राचीन और पृथ्वीराज के समकालीन शासक के प्रमाण देते हुए इन राज्यों से सम्बन्धित रासो की ये तथा अन्य कई छचये सप्रमाण निराधार सिद्ध कौं। १ महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचंद झा ने सो को अनैतिहासिक ठहराते हुए, पृथ्वीराज के दरबार में चुद के अस्तित्व तक पर शंका उठाई यौर इस भई-भत’ को सन् १. पृथ्वीराज रासो की प्रथम संरक्षा, सन् १८८८ ई० २. पृथ्वीराज चरित्र, सन् १८८६ ई०; ३. पृथ्वीराज रासो, ना० प्र० प, भय ५, सन् १६०१ ई०, १० १७० : ४. हिंदी का अादि कवि, ना० म० ए०: भाग ५, वही; ५. सन् १६.० १०१६ १३ ई० । ६. मिश्रवन्धु-विनोद, तृतीय संस्करण, पृ० ५६१ ; हिंदी-नवरत्न ; हिंदी की रासौ साहित्य, हिंदुस्तानी, अप्रैल १६३६ ई० ; ७, प्रिलिमिनरी रिपोर्ट श्रान दि आपरेशन इन सर्च व मैंनुस्क्रिप्टस व बार्डिक क्रानिकल्स, ए० एस० बी०, सन् १८१३ ई० ; ८, विब्लिोथेका इंडिका, ( ए० एस० बी० ), न्यू सीरीज़, संख्या १४१३, सन् १९१८ ई०, पृ० ७३ ।। ६. सरस्वती, भाग २९०, संख्या ५, मई, पृ० ५५४६२ तथा संजय ६, जून, • पृ० ६७६-८३, सन् १९२६ ई० ;