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( १६६ ) शोध की और अपने विविध लेखों द्वारा रासो के विरोधियों को अपना मत सुधारने की प्रेरणा देने का यथाशक्ति उद्योग किया । १० झाबरमत शर्मा ने चौहान की अग्निवंशी कहलाने के प्रमाण देकर रास वणित श्रचिन-कुल का प्रतिपादन किया । पं. नरोत्तमदास स्वामी ने शृथ्वीराज रास? की भइ तथा पृथ्वीराज के दौ मंत्रियों पर प्रकाश डाला । श्री अगर चंद नष्ट ने पृथ्वीराज रासो की हस्तलिखित प्रतियों की सूचना दी और नृथ्वीराज की सभ में जैनाचार्यों के एक विनोदपूर्ण शास्त्रार्थ का उल्लेख किया } प्रो० नीनारस रंग ने डौं, दशरथ शुम के सहयोग से रासो भाषा पर विचार प्रकट किये । श्री उदय सिंह भटनागर ने पृथ्वीराजरास' में चंद के वंशजों के कई नाम उसके छन्दों के रचयित के स्वरूप में प्रयुक्त किये जाने की अोर भी ध्यान रखने का संकेत किया। कवि राव मोहनसिंह ६ ने सो की प्रामाणिकता की परीक्षा तथा उसके प्रक्षेपों को हटाने के लिये नये विचारणीय तर्क सन् १९५० ६० ; परमारों की उत्पत्ति, वही, भाग ३, अङ्क २, जुलाई सन् १९५१ ६० ; रासो के अर्थ का क्रमिक विकास, साहित्य-सन्देश, जुलाई सन् १९५१ ई० ; सम्राट पृथ्वीराज चौहान की रानी पद्मावती, अरुभारती, वर्षे १, अङ्क १, सितम्बर सन् १९५१ ई०; दिल्ली का तोमर राज्य, राजस्थान-भारती, भाग ३, अङ्क ३-४, जुलाई सन् १९५३ ई० ; १, चौहानों को अग्निवंशी कहलाने का अाधार, राजस्थानी, भाग ३, अङ्क २, अक्टूबर सन् १९३६ ई० ; २. सम्राट पृथ्वीराज के दो मंत्री, राजस्थानी, भाग ३, अंक २, जनवरी सन् १९४० ई० ; पृथ्वीराज रासो, राजस्थान भारती, भाग १, अंक १, . अप्रैल सन् १६४६ ई० ; पृथ्वीराज रासो की भाषा, वही, भाग १, अंक २, जुलाई सन् १९४६ ई० ; । ३. पृथ्वीराज रासो और उसकी हस्तलिखित प्रतियाँ, राजस्थानी, भाग ३, अङ्क २, जनवरी सन् १६४० ई० ; पृथ्वीराज की सभा में जैनाचार्यों के शास्त्रार्थ, हिन्दुस्तानी, पृ० ७१-६६ ; ४, बीण, अप्रैल १६४४ ३०, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क १, अप्रैल । सन् १९४६ ३० ; वही, भाग १, अङ्क ४, अनवरी सन् १९४७ ई० ; ५. पृथ्वीराज रासो सम्बन्ध कुछ जानने योग्य बातें, शोध-पत्रिका, भाग . २, अङ्क १, चैत्र सं० २००६ वि० ( सन् १९४६ ई०); ६. पृथ्वीराज रासों की प्रामाणिकता पर पुनर्विचार, राजस्थान भारती, भाग. १, अङ्क २-३, जुलाई अक्टूबर सन् १६४६ ई० ;