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एक ओर जहाँ उनी सम्मति से कवि इतिहास नहीं लिख सकता, वहाँ वे शिलालेखों को प्रभा-रूप से क्यों लाते हैं, जिनका पवन इतिहास या वैज्ञानिक नहीं करतें वरन् कल्पना को श्रेय बनाकर अलेक अतिशयोक्तियों से पूर्ण करके कवि ही प्रस्तुत करता हैं ! इस विरोध से मेरा यह अभीष्ट कदापि नहीं कि रसो की संगत बातों पर प्रकाश न डाला जाये, वरन् निवेदन इतना ही है कि यदि रस में वर्णित कोई विचरण अन्य प्रमाण से सिद्ध होता है तो शिलालेख मात्र के अभाव में उसे एकदम अनैतिहासिक न कह दिया जाय | भारतीय इतिहास के अन्धकार-युग में जहाँ शिलालेख और ताम्रपत्र प्राप्त नहीं हैं, वह अपने इतिहास के कलेवर को प्राण-रूपी वरदान देने के लिये इतिहासकार प्रबन्ध और मुके कवि के ही नहीं लोक-गीतकार तक के द्वार पर क्यों गिड़गिड़ाता है ? अब हम रासो सम्बन्धी कतिपय अनैतिहासिक कहे जाने वाले तथ्य की परीक्षा करेंगे : अग्सि-वंश । चंद ने लिखा है कि अबू पर्वत पर अनेक ऋषियों को यज्ञानुष्ठान करते देखकर, दानवों ने उसमें नाना प्रकार से विघ्न डालने झारम्भ किये, यह देखकर ऋविगए वशिष्ठ के पास गये और उनसे राक्षसों का विनाश करने की प्रार्थना की, तब वशिष्ठ ने अग्नि-कुडे से प्रतिहार, चालुक्य और परमार इन तीन वीर पुरुषों को उत्पन्न किया जो र!स से भिड़ पड़े. तब सु रिरुष वा चिट । कंड रोदन रचि तामह ।। धारय ध्यान जज्ञि होम | मध्ये वेदी सुर सामहे ।। torical, imaginary or legendary element." Dinesh Chandra Sarkar, Review of the Prthviraj Vijaya of Japanaka, with the commentary of Jonaraj, edited by M. M. Dr. G. H. Ojha and Pandit Chandra Dhar Saarma Guleri. Indian Historical Quarterly, p. 80, vol. XVIII, March 1942, १. छं० २४४, स० १ ; २. छं० २४५-४७, वहीं ; ३. छं० २४८, वही ;