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रोमपाद-[ या लोमपाद=पैरों में रोयें वाला । ] ‘अनु’ के वंशज दीर्घतमस के नियोग द्वारा उत्पन्न अंग' के नाम से अंग-देश प्रसिद्ध हुआ। अंग के प्रपौत्र धर्मरथ हुए और धर्मरथ के पुत्र रमपाद नाम से विख्यात हुए। रोमपाद का दूसरा नाम दशरथ भी था । रोमपाद पुत्रहीन थे अतएव सूर्यवंशी अज' के पुत्र ‘दशरथ ने इन्हें अपनी कन्या शांता गोद लेने के लिये दी थी ( विष्णुपुराण ४।१८।१५-८) । वाल्मीकि रामायण में भी इस कथा' का उल्लेख है। शरथ की पुत्री शांता का विवाह' श्रृंग ऋषि के साथ हुआ था । अग्निपुराण, मत्स्यपुराण और रामायण में हम शांता के दत्तक पिता का नाम लोमपाद ही पाते हैं। उत्तर रामचरित्र--पृष्ठ २८६ में भी रोमपद' नाम मिलता है। संभरिय=संबोधन वान्चक शब्द हैं और संभल के राजा पृथ्वीराज चौहान के लिये प्रयुक्त हुआ है। फंदन, फंदा की बहुवचनान्त प्रयोग है। चंपापुरिय [चंपापुरी या चंपापुर 7---‘अनु’ के वंशज रोमपाद के प्रपौत्र 'चंप ने चंपा नगर बसाया ( विष्णुपुरा---४।१८ १९-२० )। भागवत में चंपापुरी बसानेवाले चंप का नाम नहीं मिलता । उसमें चंप' का नाम इक्ष्वाकु के वंशजों में अपने उचित स्थान पर न होकर प्रथम ही लिख दिया गया हैं। चंपापुर अंग देश के जिले चंपा की राजधानी थी' [ Ancient Geography of India. Cunninghan, p. 477 ]। बिहार के जिले भागलपुर में चा नगर एक बड़ा ग्राम है। भागलपुर से तीन मील की दूरी पर २५०. १४' अक्षांश उत्तर और ६°. ५५' देशांतर पूर्व में बसा हुआ है? [The East India Gazetteer, Hamilton, Vol, I, p.390 । भागलपुर के समीप इस प्राचीन नगर के ध्वंसावशेष अव भी देखे जा सकते हैं। नगर का स्थान एक साधारण ग्राम ने ले लिया है ।। पालकाव्य के विरह करि अंग भये अति धीन । मुनिवर तब तहुँ अयि नैं गज चिग्गछ गुन कीन ।।छं० ७ । रू० ७ । | गाथा कोपर पराग पत्रं छालें डालं फलं फलं कंद ।। फल्लिकली ६ जरियं कुंजर करि थूलयं तन४ ।। ॐ० ८ ! रू० ८ } (१) ना०—चिगच्छग्गुन; हा०—चिव छगुन (२) ए०-- ढलं, ढालं, छलं; हा०—फुलं (३) ना —फली (४) हा०—ज्ञनयं