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शब्दार्थ-६० १६-घटछै । मुर=मुड़ा । घुट कोस=ॐ केस । मुकाम करि-एड़ाव डालता हुअर ! चढ़ि चल्यौ = चढ़ चला (या लौट चला। कौ=का (सम्बन्ध कारक) । परिवांन<प्रमाण । ८०-१९-बै कुछ विद्वान् इसका विशेष अर्थ लगाते हैं परन्तु यह सम्वन्धकारक का चिन्ह समझ पड़ता है और रासो के अनेक स्थलों पर इस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। दूसरी सम्भावना यह भी है कि यह छंद के नियम पूरे करने के लिये लगा दिया जाता होगा । दलसेना } संमुहौ-मुकाबला करने या भिड़ने । यौ= गया। पंजाब प्रमांन= पंजाव को प्रमाण बनाता हुआ अर्थात् सीधा पंजाब को लक्ष्य करके । पुब्ब<पूर्व १ रु<अरु और। पच्छिम <सं० पश्चिम । दुहुँ = दोनों ।। | रू०२०----कनवज्ज<सं० कान्यकुब्ज (=कुबड़ी कन्या)=कन्नौज [वि० वि० भौगोलिक प० में । दूत=गुप्तचर । तिन थांन=उस स्थान पर । मंडि= रवकर कहना । प्रमांन<प्रमाण =सबूत ! कमधज्ज (<कामध्वज था कन्यावज)---यह पृ० रासो में अनेक स्थलों पर जयचंद के लिये आया है [उ०----- इह कहत नृप पंग सु अष्पी । बियौ दूत नप अंण्यन दधी ।। दुचित चित्त मुक्की बेर बानी । कुसल वीर कमज्ज न जानी ।।” सम्यौ २६, छंद ८, चढ़ि चल्यौ पंग कमधज्ज राइ । सो छिन्न भिन्न डम्भरित छाइ ॥” सभ्यौ २६, छंद ३६; *आइ सँपते सूर धर । सुरताना कमधज्ज ।।” सुम्यौ ३१, छंद २२; प्रग कमधज्ज बाँह बर ।' सम्यौ ६१, छंद ३० ३; कमज्जराज फिरि बंद कटु ।” सम्यौ ६१ छंद, ६५८--इत्यादि । कन्नौज वाले राठौर वंशी राजपूत थे और कामध्वज उनका विशेषण या पदवी थी । कामध्वज का अर्थ है। कि जिसकी ध्वजा में कामदेव अंकित है और कन्याध्वज का अर्थ है कि जिसकी जो में कुमारी कन्या अंकित है। संवत् ५२६ (४७० ई० पू०) में नयनयाल ने कन्नौज पर अधिकार किया और तभी से राठौरों ने कामधुज हुदवी ग्रहण की” [Rajasthan, Tod, Vol. II, P, 5] । परन्तु कन्नौज पर सबसे प्रमाणिक पुस्तक History of Kaflauj. R. S. Tripathi, Ph. D. (London)--में ये सर्व प्रमाण नहीं मिलते ।। |. रू० २१---बर अवाज सब मिट्टि के=सब आवाजें मिटाकर अर्थात् चुपचाप ।। रू० २३-संभल नृपति=साँभर का राजा अर्थात् पृथ्वीराज । ग्रिल्ल= भूखेलना | पीधर (या पद्धर) <सं० मधारणा=जाल, बाड़ा या रोक । जूहू (यर