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कवित्त मिले सुब्ब सामंत, मत्त संड्यौ सु नरेसुर ! दह गूला दल साहि, सञि चतुरंग सजिय उर ।। मवन संत बकौ न, सोइ वर मंत विचारौ । बल घट्यौ अप्पन्नौ सोच, पच्छिलौ निहारौ ।। तन सद स लीजे* मुराति, जुगति बंध गौरी दुलह । संग्राम भीर प्रिथिराज बले, अप्प मत्ति कि कलह ।। ॐ०२३।०२३।। भावार्थ—०२३-सब सामंत एकत्रित हुए और नरेश्वर (पज्जुनराव) ने यह सुझाव पेश किया, शाह ने बड़े विचार पूर्वक { हम लोगों से दस गुनी चतुरंगिणी सेना तैयार कर ली है ( अतएव इस समय } श्राप शांति नीति अहण कीजिये और यही श्रेष्ठ मंत्रणा है; [सलाह देने में न चूकिये वरन् श्रेष्ठ मंत्रणा सोचिये ।” ह्यौर्नले । (साथ ही ध्यान रखिये किं) अपना बल घट गया है। (तथा) पिछली लड़ाइयों का क्या प्रभाव पड़ा है इसे भी सोच लीजिये । अपने विविध अंगों को मिलाकर और युक्ति पूर्वक गोरी की सेना को घेरकर हम मुक्ति ले अिपनी बाधा को टालें-मुक्ति का अर्थ मरकर मृत्यु नहीं वरन् शत्रु से पीछा छुड़ाना है।]---पृथ्वीराज के बल ( सेना ) पर इस समय संग्राम की भीर है ( चारों ओर से प्रहार हो रहे हैं ) अतएव अपने आप झगड़ा भोले न लीजिये । या–प अपने में कलह न कीजिये अर्था गरी से इस समय झगड़ा न कीजिये उसे मिलाये रहिये । | शब्दार्थ–रू० २३-—मत्त=मत, सलाह, सुझाव । नरेसुर<नरेश्वर राजा } पञ्जूनराव की पदवी नरेसुर’ थी। प्रज्जून = ये पृथ्वीराज के साले थे (Rajasthan. Tod, yol Tr, pp. 350-351 )। दह गूना-दसगुना । सजिय उर मन लगाकर, बड़े विचार पूर्वक । मेघनमंत=मौन मत अर्थात् शांति नीति । चुकौ नः न चुको । सोइ=वही । वर मंतश्रेष्ठ मत (सलाह, मंत्रणा) । अप्पन्नौ अपना । घुट्यौ=घट गया है । पच्छिलो निहारौ अंत भी देखो; पिछली (लड़ाइयों को क्या प्रभाव पड़ा है इसे भी) सोच लो । सुन=अंग । सुदर्श त == सौ (अर्थात् अनेक)। तन सद-अनेक ( विविध ) अंग । स =सटें, मिल जावें । मुगति<सं० मुक्ति । जुगति<सं० युक्ति । बंध गोरी दलह-गौरी के दल को बाँध लें । बल-शक्ति । प्रिथिराज बलपृथ्वीराज की शक्ति ( सेना ) पर । अप्प = आप। मत्ति किज्जै मत कीजिये । कुलह-झगड़ा, फूट। (१) मो०-बल (२) मो०---स लीजै, ए०-सद सटें ।।