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को । रासो में पृथ्वीराज का नाम भी कहीं कहीं ‘जंगलेश या जंगली राव' मिलती है। जंगलदेश पृथ्वीराज के पैतृक राज्य का नाम था,' Asiatic Journal Yof. 25] । सथ्थं = साथ् । बंभनबास (<ब्राह्मण वास)= “यह सिंध का किसी समय का प्रसिद्ध परन्तु अब उजड़ा हुआ नगर है। बंभनवास और यूनानी हरमतेलिया (Harma.telia) एक ही हैं [Ancient Geography of India. Cunningham, Vol. I, pp. 287, 277]। चंद ने पृथ्वीराज रासो के अनेक स्थलों पर बंभनवास का प्रयोग किया है, (उ०-वैभन सु वास पद्धन प्रजारि । ता समह भीम मण्डन सु राारे।।-रासो सम्यौ ११, छंद ८) । ह्योनले महोदय ने जयपुर से कुछ सील की दूरी पर स्थित देवसा नामक एक साधारण ग्राम के वर्णनात्मक नाम को ही श्रमवश वैभनवास मान लिया है। विस=(१) निर्वासित करना (२) विलास (बिहार) । बङ गुज्जर = बड़गूजर छत्तीस राजपूतों की वंशावली में हैं। अंबर और जयपुर में इनका राज्य था परन्तु कछवाहों ने इन्हें वहाँ से निकाल दिया था ! कुरंभ वंशी पज्जून भी कछवाह था । तथ्थे–यहाँ से । कित्तर --कितना } भए–पाँच पांडवों में से एक जो वायु के संयोग द्वारा कैती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । ये युधिष्ठिर से छोटे और अर्जन से बड़े थे तथा बहुत बड़े वीर और बलवान योद्धा थे | वि वि०--महाभारत । कौरु<कौरव<सं० कौरव्यये कुरु राजा की सन्तान थे [वि० वि०---महाभारत ] । कुछ विद्वान भर विभर सेन चेहुनि दल' का अर्थ “चौहान का दल कठिन मोर्चा लेने में दक्ष है ---{भर विमरमर भीर बड़ी आपत्ति, कठिन मोर्चा; सेन-चतुर, दक्ष)—भी करते हैं । कवित तब कहै जैत पंवार सुनहु प्रिथिराज राजमत । जुद्ध साहि गोरी नरिंद लाहौर कोट गत ।। सबै सेन अप्पनौ राज एकङ सुकिज्जै ।। इष्ट अल्य सगपन सुहित बीर)१ काद' लिधि दिज्जै ।। सामंत सामि इह मंत' है अरु जु संत चिंतै नृपति ।। धन रहै धम्म जस जोग है (अरु) दीपदिपत्ति दिवलोक पति 1छिं०२६/०२६॥ | भावार्थ----रू० २६–त जैत पँवार (प्रभार) ने कहा कि हे पृथ्वीराज राजमत यह होना चाहिये । नरेन्द्र को लाहौर के दुर्ग में पहुँच कर शाह गोरी (१) हा०—(बोर) पाठ मानते हैं जो छंद भंग करने के अतिरिक्त नई० प्र० सं० वाली प्रतियों में भी नहीं पाया जाता (२) १०–अरु जुद्ध (३) न०--- दिपति दीप दिव लोक पति ।