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से युद्ध करना चाहिये । “हे राजन् , पृथ्वीराज, मेरी सलाह सुनिये । लाहौर के दुर्ग में पहुँचकर युद्ध में आप शाह गोरी को पकड़ लें ।' योनले । अपने राज्य की समस्त सेना एकत्रित कर लेनी चाहिये और अपने इष्टों, भृत्यों, सगों और सुहितों को पत्र लिख देना चाहिये । हे सामंतों के स्वामी, यहीं राजमत होना चाहिये फिर जो कुछ आप और विचारें } धर्म और देश की योग ही आपका मुख्य धन होना चाहिये क्योंकि आपका तेज इंद्र के समान अक्षय है । । ‘हे सामंतों के स्वामी, यह तो हम सामंतों का मत है और जो बात आप उचित समझे वह की जाय । स्वामिधर्म रवामिभक्ति ) एक पवित्र वस्तु है और राजपूत के लिये यश के योग्य होना ही कल्याण है। राजन् पृथ्वी पर इन्द्र सदृश तेजस्वी हों ।' ह्योनँले ] ।। शब्दार्थ-रू० २६-जैत पंवार<जैत प्रमार---इसका पूरा नाम जैत सिंह प्रमार था और यह प्रसिद्ध आबूगढ़ का अधिपति था । जैसा कि इसी सम्यौ में आगे पढ़ेंगे कि जैत का संबंधी या भाई मारा गया---(जैत बंध गिरि परयौ सुलत्र लष्पन कौ जायौ)। उसके पुत्र का नाम सुलख था और पुत्री का इच्छिनी जिसका विवाह पृथ्वीराज से हुआ था (रासो सम्यौ २४) । पृथ्वीराज ने आरह वर्ष की आयु में इच्छिनी से विवाह किया था और वह उनकी दूसरी रानी थी--बार बरस का सलष सोय । दिन्नौ सु आय इंछनी लोय । अबू सु तौरि चालुक्क गंजि । किन्नौ सु ब्याह परिभाब भंजि—रा सन्यौ ६५,छं० ४] । जैन ने बराबर पृथ्वीराज का साथ दिया था । संयोग अपहरण बिधयक युद्ध में वह भी आहत हुआ था (रासी सुम्यौ ६१) १ वह प्रसार वंशी राजपूत था । प्रमार के बदले पंवार, परमार, पवार, पुश्रार नाम भी रासो में पाये जाते हैं। ग्वार अग्निकुल क्षत्रियों में प्रभार भी हैं (रासो सभ्य) “यह ( मार जाति ) अग्निकुलों में सबसे अधिक शक्तिशाली जाति थी और ८५ शाखाओं में विभक्त थी” (Rajasthan, Tod. Vol. I, pp. 90-91)? प्रमार जति का वर्णन Hindu Tribes and Castes. Sherring. Vol. 1, pp. 143-49 में भी मिलेग । गत=जाकर । एक इका। संगपन=अपने सगे। संत<सं०° मंत्रणासलाई । दीप=तेज दिधतिदीप्तिमान । दिवलोक पति= इंद्र वि० वि० प० में देखिये) । | कवित्त बह बह ऋहि रघुबंस राम हेक्कारि स उठ्यौ । सुनौ सब सामंत साहिं आयें बल छुट्यौ ।।।। . (१) १०---बक्यौ ।