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( ४४ ) परन्तु असफल रहा। अंत में अपने देश के शत्रु सुलतान शोरी के यहाँ उसने नौकरी कर ली। इसीलिए शहाबुद्दीन के अन्य अफ़सरों के साथ उस का भी नाम आया है। तबझाते नासिरी' में उसकी बड़ी प्रशंसा की गई है। पच्छिमी घान = यह पश्चिमी दिशी का वाँ हो या संभव है कि इसका नाम *श्चिमी खाँ' ही रहा हो । पान सह' = पठानों के साथ । बिहर=दगाबाज़ । रू० ४०–गष्षर---पृथ्वीराज रासो में गब्बर 2ौर घोर दो नाम अनेक स्थलों पर आये हैं। ये दो भिन्न पहाड़ी जातियाँ थीं । अनेक लेखकों ने खोक्खर और गक्खर को एक ही मान लिया है। खोक्खर और गखर का मतभेद रैवर्टी महोदय ने तबकाते नासिरी' के अनुवाद पृष्ठ ४८४, ५३७, ११३२, ११३६ की टिप्पणियों में बिलकुल मिटा दिया है। अंत में आप लिखते हैं "Khokhars are not Gakhars, I beg leave to say, although the latter are constantly confounded with them by writers who do not know the former." Tabaqat-i-Nasiri. Raverty, p. 1136, note 7. आइने-अकबरी' में Blochmann ने पृष्ठ ४५६, ४८६ और ६२१ pe History of the Rise of the Mahomedan Power in India till....!312 (Firishta) Briggs ने pp, 332-86 में खोक्खरों का हाल लिखा है परन्तु उन्हें खोक्खर न कहकर राखर कहा है ।।::::राक्खरों की जाति-पाँति का पता नहीं चलता । यह बर्बर जाति जनी और सिंधु नदी के बीच की पहाड़ियों में रहती थी। सन् १८१८ ई० में ये मुसलमान बना लिये गये थे | ग़ोरी को इन्होंने बड़ा कष्ट दिया और अंत में सन् १२०६ : में सिंधु तट के रोहतक ग्राम में रात्रि में सोते समय अचानक उसकी हत्या कर डाली।.... Briggs. ( Firishta ). Yo1, I, pp. 182-86] । सुलतान TO A DIRETT FT CITAT PATT ETT [Tabaqat-i-Nasiri. Raverty. pp. 481-85-उस समय लाहौर और जूद की पहाड़ियों पर रहने वाली पहाड़ी जातियों ने जिनमें स्वेच्छाचारी खोक्खर भी थे विद्रोह किया। उसी वर्ष जाड़े की ऋतु में सुलतान हिन्दुस्तान आया और इसलाम के नियमों के अनुसार युद्ध करके उसने इन विद्रोहियों के रक्त की नदी अहाई...]। चंद ने रासो में गबखरों को सुलतान गोरी के पक्ष वाला ही कहा है। रासो सभ्यौ ६१ में हम राष्षरों को जयचंद की और से लड़ते हुए पाते हैं । जहाँ तक मेरा अनुमान है चंद वरदाई ने भी भ्रमवश खोखरों और गक्खों को एक ही समझ लिया । ३ ‘गष्पर” लिखकर षोषरों” का ही बर्णन करते हैं।