पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/३००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(६२)

________________

भावार्थ-रू० ५०—जब प्रात:काल हुआ और रात रक़मय दीखने लगी ऊषाकाल देख पड़ा, चंद्र देव मंद होकर अस्त हो गये तब तामसिक वृति वाले योद्धा क्रोध से भर गये । नगाड़ों के ज़ोर ज़ोर बजते ही वीरों में वीर वर्ण अंकुरित हो उठा, पृथ्वी काँपने लगी पर जब चारणों ने कड़खा गाया तो कायरों की दृष्टि भी रौद्र व वीर रस चूरा हो गई (उनकी अाँखों से भी बीरता टपकने लगी, जोश बढ़ आया) । हाथियों के घंटे घनघोर शब्द करते हुए बजने लगे और जंजीरें खनखनाने लगीं। [ पृथ्वीराज के चाचा ] कन्ह को हाथियों और धन का दान करते देखकर युद्ध के नगाड़े बजने लगे (जिसे सुन कर) वीर गरजने लगे और (ब्राह्मण) मंत्रोच्चार करने लगे । उस स्थान पर नृप [पृथ्वीराज का दल दुर्जनों का नाश करने के लिये अद्भुत रूप से सुसज्जित हुआ । शूरों के शिरस्त्राणों पर लगे हुए उड़ते तुरें उनके सिर पर उसी प्रकार से गिरते थे जैसे मान सूर्य के हस्त नक्षत्र में स्थित होने से चंपा और कमल के फूल बिखर गये हों । श्रेष्ठ वीरों की पंक्तियाँ योगियों की पंक्तियों सइश थीं और कवि' को ऐसी उपमा जान पड़ी कि मानो वे (योद्धा, योगियों की भाँति) भाया मोह और छोह का परित्याग कर तलवार की धार रूपी तीर्थ स्थान पर (की अौर) दौड़ रहे हों (क्योंकि योद्धाशों के लिये तलबार की धार से मरना ही तीर्थ है] । सांसारिक श्रृंखलायों में अपने हाँथों (=अपने ग्राप) हाथी सदृश अंजीरों से जकड़ा जाकर जिस प्रकार योगी अपनी प्रबल तपस्या द्वारा उन्मत हाथी के समान मोह' रूपी जंज़ीरों को तोड़कर देवतुल्य आनन्द प्राप्त करता हैं उसी प्रकार सामंतों का स्वामी ज्ञ के पत्तों सदृश पृथ्वी (अर्थात् पृथ्वी पर रहने वाले दुष्टों) को कुचल कर विजय प्राप्त करता है। | शब्दार्थ-रू.० ५०...रत्तिय(रात्रि = रात । जुः जब । <रक्त । रत्त दीसय रक्त वर्ण दीखने ली अर्थात् ऊषाकाल देख पड़ा । चंद<सं० चंद्र । मंद-मंद होकर । चंदय=अस्त हुयी । तनस-क्रोधे । तामस सूर= तामसिक वृत्ति वाले योद्धा । रास तामस–रौद्र और वीर रस ॐदयौ-गान । वीर वरनि<वीर वर्ण । अकुरयं=अंकुरित हो उठा । धरधरती । नीसांन< फा०= 5 (नगाड़े) । धुनि घनघनी धुन से अर्थात् बड़े और ले धाइर= चारण (शुद्ध वाले) । कपि=कड़वा (युद्धत्साह का गीत विशेष) । रस कुत्रं क्रूर रस अर्थात् बीर व रौद्र रस । रसमि<सं० रश्मि=किरण परन्तु यहाँ दृष्टि से तात्पर्य हैं)। रुद्र भनकिय= रौद्र शब्द करने लगे। काइर= कायर है। घनकि=खनखनान । संकर<सांकल-जंजीरें । रनसं० रण । नैकिनगाड़े । भेरिय:बजे उठे । कन्ह- सोमेश्वर के छोटे भाई अर्थात् पृथ्वीराज के