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लेह लेहू छरी । लोह काढे अरी । कन्ह जा' संभरी । पाइ भंड फिरी ।। छं० ६.३ ।। बोर हुक्के करी । नेन स्तं बरी ।। पंड जा षोलियं । बीर सा बोलियं ।। ॐ० ६.४ । बीर बज्जे धुरं । दुति कट्टे छुरं ।। झार संकोरियं । फौज विप्फौरियं ।। ॐ० ६५ ।। दुति रुद्वीपरे । अम्ग फूलं झरे ।। हेम पन्नारिय। जावकं ढारियं ।। ॐ ६६ ।। आननं हक्रयं । अंग जा चयं ।। सत सामंतयं । बोन सा पथ्थयं ।। छंद १७ । फौज दोऊ काटी। जांनि जूनी दी ।। •••• •• " | """"""""""""।ॐ०६८ ०६४ भावार्थ-रू ६४-खच्च खच्चे का शब्द अत्यधिक बढ़ गया । स्वामी (पृथ्वीराज) अपने मन में प्रार्थना करने लगे। उनको क्रोधावेश हो आया और मन में सिंह का साहस भर गया तथा माया सोह् क्षीण हो गये । खूब दान दिये गये । राजा की प्रशंसा होने लगी | योद्धाशों ने सात्विक धर्म का ध्यान रक्खा । म्लेच्छों के हाथ काट डाले गये और उनके कंधों से रक्त की धार बहने लगीं । जिसकी दाल गिर पड़ी उसके प्राण चले गये । (धनुष में) प्रत्यंचा पर संघाने हुए बाण जाल में फंसे हुए पक्षियों सदृश लगते थे । काली और सफेद (श्वेत) । सेना थीं तथा पीले व लाल रंग की भरमार थी । काली पोशाक यवनों की, सफेद त्रियों की तथा लाल पीला रंग रक्त व मांस को जान पड़ता है। घर कोलाहल मचने लगा, (गोरी के) हाथी क्रोधित होकर इधर उधर दौड़ने लगे (जिसके कारण) फौजें फट गई और शूर वीर थान स्थान पर झंडों में खड़े हो गये । पकड़ो पकड़ो की पुकार मच राई (अौर) तलवारे निकल ग्राई । यह देखकर कन्ह (अपने धन के.) प्रत्यंचा सँभाल इधर उधर दौड़ने लगे । वीर आरजे और उनके नेत्र रक्त च हो गये । रत्नई निकल ऋये । और सैनिक गण ) वीरों के समान बोलने लगे तथा क्रूरता पूर्वक लड़ने लगे । तलवारों के इधर उधर वार पड़ने से हाथी घायल हो गये तथा फौज छितरी गई । ( अंत में ) हाथी अवरुद्ध हो गये ( तब उनपर ) अाग के शोले फेंके गये । सोने की पनारियों से गुलाल डाला गया’ ! ( कटे हुए ) मुंह ( सिर.) चिल्लाने लगे और (१) ए०ञ्जामं वयं ।