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पर्यौ नरसिंह नरव्वर दूर । तुटै सिर अवध जाम करूर }} छं० १४२ ।। पृ० ० ना० प्र० सं० में छं० १०६ की प्रथम पंक्ति में प्रल' पाठ की जगह प्रज' है जिसका अर्थ रासो-सार में राजा' किया गया है। पेट में कटोर भोंकने और पेट की अंत मेद मज्जा आदि निकलने का वर्णन जैसा रासोसार में है, प्रस्तुत रू० ७२ के आधार पर नहीं है । रासो-सार के अनुसार यह वीर मरा नहीं है परन्तु रू० ७२ में उसकी मृत्यु का और अधिक स्पष्ट वर्णन ही क्या किया जा सकता था। सबसे विचित्र बात तो यह है कि रासो-सार वालों ने नरसिंह को कूरंभ का पुत्र तक कह डाला है। | भुजंगी छुटी छंद निच्छद सीमा प्रशानं । मिली ढालन माल राही समान ।। निसा मन नीसांन नीसांन धूअं ।। धुझं धूरिनि मूरिने पूर कू ।। छ० १०७ ।। सुरक्षा फौज तिर्ने पंत्ति फेरी । मुख्न लम्भिर चहुन पारस धेरी ।। भये प्रति सुजात संग्राम वाले । चहुबां उड़ाय सालो पिथोललं ।। छं०१०८।०७३ । भावार्थ-रू०७३--[ रात्रि। उनकी इच्छा थी अनिच्छा से अपनी सीमा को प्रमाणित करती हुई (अर्थात् अपना कृष्ण अंबर फैलाती हुई) आई और फौजों को उसी प्रकार मिली जिस प्रकार थके हुए पथिकों को मिलती है । निशा को आया जानकर दोनों शोर के नगाड़ों पर चोट पड़ी । [ फौजों के फिरने और शांति स्थापित होने पर धूल का अंधड़ (ऊपर से नीचे की ओर) मुड़ा शौर (इतनी धूल लौटी कि) कुएँ भर गये । सुलतान की फौज की पंक्तियाँ पीछे लौटीं अौर चौहान की सेना ने आगे बढ़कर घेरा डाल लिया [ या बेरें के प्रकार का पड़ाव डाला ] । १ दूसरे दिन ) जब रणस्थल में सुंदर प्रात:काल हुआ तो वीर चौहान विशाल शाल वृक्ष लश ( युद्ध के लिये ) उठा ! शब्दार्थ–रू ७३---टीआई, फैली । छंद निच्छंद-इच्छा या अनिच्छा से । सीमा प्रमान--सीना की प्रमाणित करती हुई । ढालनी- हाल वाले अर्थात् यौद्धागण या फौज | मालराही=माल ले जाने वाले रास्तागीर (१) ए-छंदाने, ऋ० मो:-इदनी, छदनीमा (३) कृ० को-पैति । = = = = = = =

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