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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१५३

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अध्याय १४ : मुकदमे की तैयारी


वकालत भी , कहना चाहिए, मैंने यहीं सीखी । नया बैरिस्टर पुराने बैरिस्टर के दफ्तर मैं रहकर जो सीखता है वह मैं यहां सीख सका। यहां मुझे इस बात पर विश्वास हुआ कि एक वकील की हैसियत से में बिलकुल अयोग्य न रहूंगा । वकील होने की कुंजी भी मेरे हाथ यहीं आकर लगी ।

दादा अब्दुल्ला का मामला छोटा न था । दादा ४०,००० पौंड अर्थार्त् ६ लाख रुपये का था । यह व्यापार के सिलसिले में था और इस जमा-ना में की बहुतेरी गुत्थीया थीं। उसके कुछ अंशका आधार था प्रमिसरी नोटों पर और कुछ का था नोट देने के वचन का पालन करने पर । सफाई मौं यह कहा जाता था कि प्रामिसरी नोट जालसाजी करके लिये गये थे और पूरा मुआवजा नहीं मिला था । इसमें हकीकत की तथा कानूनी गुंजाइशें बहुतेरी थीं । बही-खातेकी उलझनें बहुतेरी थी ।

दोनों ओर से अच्छे-से-अच्छे सालिसिटर और बैरिस्टर खड़े हुए थे। इस कारण मुझे इन दोनों काम को अनुभव प्राप्त करने का बढ़िया अलसर हाथ आया । मुद्दई का मामला सालिसिटर के लिए तैयार करने का तथा हकीकतों को ढूंढने का सारा बोझ मुझी पर था । इससे मुझे यह देखने का अवसर मिलता था। कि मैरे तैयार किये काम में से सालिसिटर अपने काम में कितनी बातें लेते हैं और सालिसिटो के तैयार किये मामले मैं से बैरिस्टर कितनी बात को काम में लेते हैं । मैं समझ गया कि इस मामले को तैयार करने में मुझे ग्रहण-शक्ति और व्यवस्था शक्ति का ठीक अंदाजा हो जायगा ।

मैंने मुकदमा तैयार करने में पुरी-पूरी दिलचस्पी ली । मैं उसमें लवलीन हो गया। आगे-पीछे के तमाम कागज-पत्रों को पढ़ डाला। मावक्कील के विश्वास और होशियारी की सीमा न थी। इससे मेरा काम बड़ा सरल हो गया । मैंने बही-खातों का सूक्ष्म अध्ययन कर लिया है गुजराती कागज पत्र बहुतेरे थे। उनके अनुवाद भी मैं करता था। इससे उल्था करने की क्षमता भी बढ़ी है,

मैंने खूब उद्योग से काम लिया । यद्यपि जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूं धार्मिक चर्चा आदि तथा सार्वजनिक कामों में मेरा दिल खूब लगता था, उनके लिए समय भी देता था, तथापि इस समय ये बातें गौण थीं। मुकदमे की तैयारी को ही में प्रधानता देता था । उसके लिए कानून वगैरा देखने का अथवा दूसरा