पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३६२

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अब्ध ३४ ; अकिला का नहीं लगता था। जिस किसी दिन बाद ; अर्थ भी इस वजह ६ मंद न जा, व ३ ६ ३ ४ ३ , त ? ही र सुनाई बात याव : * * । ६- ॐ ॐ शंकाएं उनके आने की उॐ सु उ ::-... अंक न जा ! यदि कि विद्यार्थियों के शरीर ५ ३ नम ने ना पर सन डालने दुइ बहुत एरियर के पड़ा । उक आत्म दिन करने के लिए मैंने धार्मिक पुस्तक हुन र सश दिया था। मैं यह जादा था कि विद्यार्थियों को अपने-आने के भू क वा । बारि, - अपने धर्म-ग्रंथोंका लाथाय ज्ञान होना चाहिए । इसलिए उन्हें : इन झाप्त करने का यशनिल लुबि र ६ ; परंतु उसे में यदि शिक्षा अंग मानता हूं । अात्मक शिक्षा एक अलग है। न है और बहु ने उल्टआश्रम बालक को पाना शुरू करने से पहले ही जान ः । ॐ त्रि करने का अर्थ है चरित्र-निर्माण करना', ईश्वर ज्ञान केन', 'आत्मान संपादन करना । इस ज्ञानको प्राप्त करने में बालक हुः सहाथ की - वश्यकता है और मैं मानता था कि उसके अन्दर इस सब ज्ञान व्यर्थं हैं और हानिकारक भी है । है ।। हुन । एक इ । ॐ ॐ भ ने । चौथे अन बनीं ' ' है; प में से ज; हर थे अतः इस भय कई रोक ने हैं उन्हें न तो न লিলনা, ও কাকা, গ যে মুনম কী? মক্ষি হা-অন দণ प्राप्त करके, दे पृथ्वी पर भार-रूप होकर जाते हैं। ऐसा अनुभव सब जग पाया जाता हैं । १९११-१२में शायद इस विचाको में प्रदान न कर सकता; परंतु मुझे यह बात अच्छी तरहसे मालूम है कि उस समय मेरे विचार इसी तरह थे। अब सवाल यह है कि आत्मिक शिक्षा दी किस तरह जेय ? इसके