पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/५०२

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• अध्याय ३७ : अमृतसर-कांग्रेस ४८५ बातोंमें जिस सरकारका साथ दे रहे हैं उसीके विरोधकी जो ये सब बातें करते हैं, सो व्यर्थ है । तलवारके द्वारा प्रतिकार नहीं करना है, तो फिर उसका साथ न देना ही उसका प्रतिकार करना है, यह मुझे सूझा और मेरे मुखसे पहली बार नॉन-कोप्रॉपरेशन' शब्दका उच्चार उस सभामें हुश्रा । अपने भाषणमें मैंने उसके समर्थनमें अपनी दलीलें पेश कीं । इस समय मुझे इस बातका खयाल न था कि इस शब्दमें क्या भाव श्रा जाते हैं । इस कारण में उनकी तफसीलमें नहीं गया । मुझे इतना ही कहा याद पड़ता हैं-- “मुसलमान भाइयोंने एक और भी मार्केका फैसला किया है। खुदा न खास्ता अगर सुलहकी शर्ते उसके खिलाफ गईं तो सरकारकी सहायता करना बंद कर देंगे । मैं समझता हूं, लोगोंका यह हक है । सरकारी खिताबोंको रखने या सरकारी नौकरी करनेके लिए हम बंधे हुए नहीं हैं। जबकि खिलाफतके जैसे मजहबी मामलेमें हमें नुकसान पहुंचता हो तो हम उसकी मदद कैसे करेंगे ? इसलिए अगर खिलाफतका फैसला हमारे खिलाफ जाय तो सरकारको मदद न देनेका हमें हक हैं । ” पर उसके बाद तो कई महीनेतक इस बातका प्रचार नहीं हुश्रा । महीनोंतक यह शब्द इस सभामें ही छिपा पड़ा रहा । एक महीनेके बाद जब अमृतसरमें कांग्रेस हुई तब मैंने उसमें असहयोग संबंधी प्रस्तावका समर्थन किया था । क्योंकि उस समय मैने यही आशा रक्खी थी कि हिंदू-मुसलमानोंको असहयोगका अवसर नहीं आयेगा । ३७ अमृतसर-कांग्रेस फौजी कानूनके अनुसार सैकड़ों निर्दोष पंजाबियोंको नाममात्रकी अदालतोंने नाममात्रके लिए सबूत लेकर कम या अधिक मियादके लिए जेलखानोंमें ठूस दिया था; परंतु पंजाब सरकार उन्हें जेलमें रख न सकी; क्योंकि इस घोर अन्यायके खिलाफ देशमें चारों ओर इतनी बुलंद आवाज उठी कि सरकार इन कैदियोंको अविक'