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अध्याय : ११ विलायतकी तैयारी



गुण केडे तो गुण दशगणो; मन वाचा कर्मे करी;
अवगुण केडे जे गुण करे, ते जगमां जीत्यो सही।[१]

११

विलायतकी तैयारी

१८८७ ईसवी में मैट्रिककी परीक्षा पास की। बंबई और अहमदाबाद दो परीक्षा केंद्र थे। देशकी दरिद्रता और कुटुंबकी आर्थिक अवस्थाके बहुत मामूली होनेके कारण, मेरी स्थितिके काठियावाड़-निवासीके लिए नजदीकी और सस्ते अहमदाबादको पसंद करना स्वाभाविक था। राजकोटसे अहमदाबादकी मैंने यह पहली बार अकेले यात्रा की।

घरके बड़े-बूढ़ोंकी यह इच्छा थी कि पास हो जानेपर अब आगे कालेजमें पढूं। कालेज तो बंबईमें भी था और भावनगरमें भी। भावनगरमें खर्च कम पड़ता था, इसलिए शामलदास कालेजमें पढ़नेका निश्चय हुआ। वहां सब-कुछ मुझे मुश्किल दिखने लगा। अध्यापकोंके व्याख्यानोंमें मन न लगता, न समझ ही पड़ती। उसमें अध्यापकोंका दोष न था। मेरी पढ़ाई ही कच्ची थी। उस समयके शामलदास कालेजके अध्यापक तो प्रथम पंक्तिके माने जाते थे। पहला सत्र पूरा करके घर आया।

हमारे कुटुंबके पुराने मित्र और सलाहकार एक विद्वान व्यवहारकुशल ब्राह्मण-मावजी दवे थे। पिताजीके स्वर्गवासके बाद भी उन्होंने हमारे कुटुंबके साथ संबंध कायम रक्खा था। छुट्टियों के दिनोंमें वह घर आये। माताजी और

  1. जल-फलका उपहार, पेट भर भोजन दीजे।
    समुद नमनके लिए दंडवत् प्यारे कीजे॥
    कौडी पाकर मित्र, मुहर बदलेमें देना।
    होवे कष्ट-सहाय, प्राण उसके हित देना॥
    गुणके बदले दस गुना, गुण करता यह धर्म है।
    अवगुण बदले गुण करे, सत्य-धर्मका मर्म है॥