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अध्याय १८ : झेंप-मेरी ढाल


हुई। विलायतसे विदा होनेके पहले अन्नाहारी मित्रोंको हॉबर्न भोजनालयमें मैंने भोजनके लिए निमंत्रित किया था। मैंने विचार किया कि अन्नाहारी भोजनालयोंमें तो अन्नाहार दिया ही जाता है; परंतु मांसाहारवाले भोजनालयोंमें अन्नाहारका प्रवेश हो तो अच्छा। यह सोचकर मैंने इस भोजनालयके व्यवस्थापकसे खास तौरपर प्रबंध करके अन्नाहारको तजवीज की। यह नया प्रयोग अन्नाहारियोंको बड़ा अच्छा मालूम हुआ। यों तो सभी भोज भोगके ही लिए होते हैं; परंतु पश्चिममें उसे एक कलाका रूप प्राप्त हो गया है। भोजनके समय खास सजावट और धूम-धाम होती है। बाजे बजते हैं और भाषण होते हैं सो अलग। इस छोटे-से भोजमें भी यह सारा आडंबर हुआ। अब मेरे भाषणका समय आया। मैं खूब सोच-सोचकर बोलनेकी तैयारी करके गया था। थोड़े ही वाक्य तैयार किये थे, परंतु पहले ही वाक्यसे आगे न बढ़ सका। एडिसनवाली गत हुई। उनके झेंपूपनका हाल मैं पहले कहीं पढ़ चुका था। हाउस आव कामंसमें वह व्याख्यान देने खड़ा हुआ। 'मेरी धारणा है', 'मेरी धारणा है', 'मेरी धारणा है'- यह तीन बार कहा; परंतु उसके आगे न बढ़ सका। अंग्रेजी शब्द जिसका अर्थ धारण करना है, 'गर्भधारण' के अर्थमें भी प्रयुक्त होता है। इसलिए जब एडिसन आगे न बोल सका तब एक मसखरा सभ्य बोल उठा- 'इन साहबने तीन बार गर्भ धारण किया, पर पैदा कुछ न हुआ ' इस घटनाको मैंने ध्यानमें रख छोड़ा था, और एक छोटी-सी विनोदयुक्त वक्तृता देनेका विचार किया था। मैंने अपने भाषणका श्रीगणेश इसी कहानीसे किया, पर वहीं अटक गया। जो सोचा था सब भूल गया। और विनोद तथा हास्य-युक्त भाषण करने जाते हुए मैं खुद ही विनोदका पात्र बन गया। 'सज्जनों, आपने जो मेरा निमंत्रण स्वीकार किया इसके लिए मैं आपका उपकार मानता हूं।' कहकर मुझे बैठ जाना पड़ा।

यह झेंपूपन जाकर ठेठ दक्षिण अफ्रीका में टूटा। बिलकुल टूट गया हो सो तो अब भी नहीं कह सकते। अब भी बोलते हुए विचारना तो पड़ता ही है। नये समाजमें बोलते हुए सकुचाता हूं। बोलनेसे पीछा छूट सके तो जरूर छुड़ा लूं। और यह हालत तो आज भी नहीं है कि यदि किसी संस्था या समाजमें बैठा होऊं तो खास बात कर ही सकूं या बात करनेकी इच्छा ही हो।

परंतु इस झेंपू स्वभावके कारण मेरी फजीहत होनेके अलावा और कुछ