पृष्ठ:Songs and Hymns in Hindi.pdf/१७८

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१७० भजन। परमानन्द जलचर बनचर नभचर जोई. कोटि कोटि संसारा । तिनहि खोलि कर जगपति दाता , सब दिन देत अधारा ॥२ निरमल नीर दूरसे लाई . सघन मेघ के द्वारा । मुखे भूतल पर बरसावत , जाते हो हरियारी ॥३ अन्न अनेक रसिक फल नाना . स्वादित बहु परकारा। प्रभु प्रतिदिन सब जग उपजाई . करत महा भंडारा ॥ ४ आश्रित श्रधम कहांला गावे .ईश्वर शक्ति अपारा । कन्द गुन माना . हे मन बारम्बारा॥५ au - १६६ एक सौ छियासठवां गीत । तोटक छन्द अपराध कियो जब आदम ने. उपजे महि कंटक पेड़ घने । तन धूलहि की जनु धूल भई. तेहि श्रातम सदगति पास गई॥ १ अभिमान किये पर दूत गिरे. कबहू नहि से सुखधाम फिरे । नर यायसु भंग किया जवही. किमि ताहि न दंड पड़े तवही ॥ २ तउ आदि समै जे उपाय रचे. नरकानलसे नर जासुं बचे । तेहि प्रेम निधान निबाह लिया. अघ अागुन औषधि थाप दियो । ३