सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११७
माया और ईश्वरधारणा का क्रमविकास

ब्राह्मण लोग जड़वादियों की देवनिन्दा को सुनते सहते हैं! यह बात उनके धर्म की उदारता और महत्व की ही परिचायक है।

भगवान बुद्ध ने वृद्धावस्था में शरीरत्याग किया था। मेरे एक अमेरिकन वैज्ञानिक मित्र बुद्धदेव का चरित्र पढ़कर बड़े प्रसन्न होते थे किन्तु बुद्धदेव की मृत्यु उन्हे अच्छी नहीं लगती थी, कारण, कि उन्हे क्राँस पर नहीं लटकाया गया था। कितनी भ्रमात्मक धारणा है! बड़ा आदमी होने से ही हत्या किया जाना आवश्यक माना जाता है। भारतवर्ष में इस प्रकार की धारणा प्रचलित नहीं थी। बुद्धदेव ने भारतीय देवताओं तथा जगत् का शासन करने वाले ईश्वर तक को अस्वीकार करते हुये भारतवर्ष भर का भ्रमण किया किन्तु तथापि वे वृद्धावस्था तक जीवित रहे थे। वे पचासी वर्ष की अवस्था तक जीवित रहे और देश के आधे भाग में उन्होने अपने धर्म का प्रचार कर लिया था।

चार्वाकों ने भी बड़े बड़े भयानक मतों का प्रचार किया था―उन्नीसवी शताब्दी में भी लोग इस प्रकार खुल्लमखुल्ला जड़वाद का प्रचार करने का साहस नहीं करते। ये चार्वाक लोग मन्दिरों और नगरो में प्रचार करते फिरते थे कि धर्म मिथ्या है, वह केवल पुरोहितो की स्वार्थपूर्ति का एक उपाय मात्र है, वेद केवल धूर्त निशाचरों की रचना है―ईश्वर भी नहीं है, आत्मा भी नहीं है। यदि आत्मा है तो स्त्री-पुत्र आदि के प्रेम से आकृष्ट होकर लौट क्यों नहीं आता? इन लोगों की यह धारणा थी कि यदि आत्मा होता तो मृत्यु के बाद भी प्रेम आदि भावना उसको रहती और वह खूब अच्छा खाना, अच्छा पहनना चाहता। ऐसा होने पर भी किसी ने चावाको के ऊपर अत्याचार नहीं किया।