होगा। बड़े बड़े साधु महात्माओं का ही यह दल था। एक बात आपको याद रखना चाहिये कि जगत् के सभी बड़े बड़े आचार्य लोग कह गये हैं कि हम नाश करने नहीं आये, किन्तु पहले से जो कुछ है उसे पूर्ण करने आये है। प्रायः लोग आचार्यगण का यह महान् उद्देश्य न समझ कर ऐसा कहते हैं कि उन्होने साधारण मनुष्यों की भाँति अनुपयुक्त कार्य किये। इस समय भी बहुधा लोग कहते हैं कि वे लोग ( आचार्यगण ) जिसको सत्य समझते थे उसे प्रकट रूप से कहने का साहस नहीं करते थे और वे कुछ अंश में कायर थे। किन्तु यह बात नहीं है। ये सब एकदेशदर्शी लोग उन सब, महापुरुषो के हृदय के अनन्त प्रेम की शक्ति को नहीं समझते है। वे तो संसार के समस्त नर-नारियों को अपनी सन्तान के समान देखते थे। वे ही यथार्थ मातापिता है, वे ही यथार्थ देवता हैं, उनके हृदय में प्रत्येक के लिये अनन्त सहानुभूति और क्षमा थी―वे सदा ही सहने को और भमा करने को उद्यत रहते थे। वे जानते थे कि किस प्रकार मानव समाज संगठित हो सकता है; अतएव वे अत्यन्त धैर्य के साथ, अत्यन्त सहिष्णुता के साथ अपनी संजीवनी औषध का प्रयोग करने लगे। उन्होने किसी को गालियाँ नहीं दी, न भय दिखलाया किन्तु बड़े धैर्य के साथ लोगों को एक एक कदम रख कर मार्ग दिखलाया है। ये उपनिषदो के रचयिता थे। वे अच्छी तरह जानते थे कि ईश्वर सम्बन्धी प्राचीन धारणा अन्य सभी उन्नत नीति-संगत धारणा के साथ मेल नहीं खाती। वे पूरी तरह से जानते थे कि इन सब खण्डन करने वालों के भीतर ही अधिक सत्य है; वे पूरी तरह से जानते थे कि बौद्ध और नास्तिक लोग जो कुछ प्रचार करते हैं उसमें अनेक महान् सत्य हैं; किन्तु
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