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ज्ञानयोग

परिवर्तन के साथ उसका परिवर्तन होता है। कभी कभी हम स्वप्न में देखते है कि हम कई वर्ष निरन्तर जी रहे है, और कभी कभी ऐसा बोध होता है कि कई मास एक ही क्षण में गुज़र गये है।

अतएव हमने देखा कि काल आपके मन की अवस्था के ऊपर पूर्ण रूप से निर्भर रहता है। दूसरे, काल का ज्ञान कभी कभी बिलकुल ही नहीं रहता, और फिर आ जाता है। देश के सम्बन्ध में भी यही बात है। हम देश का स्वरूप नहीं जान सकते। तथापि, उसका निर्दिष्ट लक्षण करना असम्भव होने पर भी वह है―इस बात को अस्वीकार करने का कोई उपाय नहीं है—वह अन्य किसी पदार्थ से पृथक हो कर रह नहीं सकता। निमित्त अथवा कार्य-कारण भाव के सम्बन्ध में भी यही बात है। इन देश, काल और निमित्त में हम यही एक विशेषता देखते है कि ये अन्यान्य वस्तुओं से पृथक होकर नहीं रह सकते। आप शुद्ध 'देश' की कल्पना कीजिये कि जिसमे न कोई रंग है, न सीमा, चारों ओर रहने वाली किसी भी वस्तु से जिसका कोई संसर्ग नहीं है। आप इसकी कल्पना कर ही नहीं सकते। आपको देश सम्बन्धी विचार करते ही दो सीमाओ के बीच अथवा तीन वस्तुओं के बीच स्थित देश की चिन्ता करनी होगी। अतः हमने देखा कि देश का अस्तित्व अन्य किसी वस्तु के ऊपर निर्भर रहता है। काल के सम्बन्ध में भी यही बात है। शुद्ध काल के सम्बन्ध में आप कोई धारणा नहीं कर सकते। काल की धारणा करने पर आपको एक पूर्ववर्ती और एक परवर्ती घटना लेनी पड़ेगी और काल की धारणा के द्वारा उन दोनों को मिलाना होगा। जिस प्रकार देश बाहर रहने वाली दो वस्तुओं पर निर्भर रहता है इसी प्रकार