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ब्रह्म और जगत्
चाहिये―इस अनन्त सत्ता, ज्ञान और आनन्द की चरम उन्नति― एकदेशीय उन्नति नहीं। हमे चाहिये सभी बातो की समान उन्नति। बुद्धदेव के समान महान् हृदय के साथ महान् ज्ञान का योग होना सम्भव है। मैं आशा करता हूँ, हम सभी उस एक लक्ष्य पर पहुँचने की प्राणपण से चेष्टा करेंगे।
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