सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/२३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

११. सभी वस्तुओं में ब्रह्मदर्शन

हमने देखा कि हम अपने दुःख दूर करने की कितनी ही चेष्टा क्यो न करे, परन्तु फिर भी हमारे जीवन का अधिकाश अवश्य ही दुःखपूर्ण रहेगा। और यह दुःखराशि वास्तव में हमारे लिये एक प्रकार से अनन्त है। हम अनादि काल से इसी दुःख के प्रतिकार की चेष्टाये करते आ रहे है, किन्तु यह जैसा था वैसा ही अब भी है। हम जितने ही उपाय इस दुःख को दूर करने के लिए निकालते है उतना ही हम देखते हैं कि जगत् में और भी कितना दुःख गुप्त भाव से विद्यमान है। और भी हमने देखा कि सभी धर्म कहते है कि इस दुःखचक्र से बाहर जाने का एक मात्र उपाय ईश्वर है। सभी धर्म कहते है कि आजकल के प्रत्यक्षवादियो के मतानुसार जगत् जिस रूप में देखने में आता है उसी रूप में यदि लिया जाय तो इसमे दुःख को छोड़कर और कुछ भी शेष नहीं रहेगा। किन्तु सभी धर्म कहते है―इस जगत् के अतीत और भी कुछ है। यह पञ्चेद्रियग्राह्य जीवन, यह भौतिक जीवन, केवल यही पर्याप्त नहीं है―वह तो वास्तविक जीवन का अत्यन्त सामान्य अंश मात्र है, वास्तव में वह अति स्थूल कार्य मात्र है। इसके पीछे, इसके अतीत प्रदेश में वही अनन्त रहता है, जहाँ दुःख का लेशमात्र भी नहीं है, उसे कोई गॉड, कोई अल्लाह, कोई जिहोवा, कोई जोव और कोई और कुछ कहता है। वेदान्ती इसे ब्रह्म कहते है। किन्तु जगत् के अतीत जाना पड़ेगा यह बात सत्य होने पर