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ज्ञानयोग

सभी धर्मो की आलोचना करने पर निश्चित रूप से यह सिद्धान्त लब्ध होता है कि जो कुछ प्राचीन होता है वही कालान्तर मे पवित्र रूप मे परिणत हो जाता है। हमारे पूर्वपुरुष भोजपत्र पर लिखते थे, अन्त में उन्होने कागज बनाने की प्रणाली सीखी, परन्तु इस समय भी भोज-पत्र पवित्र कहा जाता है। प्राय: ९-१० हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वपुरुष लकडी से लकड़ी घिसकर अग्नि प्रज्वलित करते थे, वही प्रणाली आज भी वर्तमान है। यज्ञ के समय किसी दूसरी प्रणाली द्वारा अग्नि प्रज्वलित करने से काम नहीं चलेगा। एशियावासी आर्यगणो की और एक शाखा के सम्बन्ध मे भी ऐसा ही है। इस समय भी उनके वर्तमान वशधर वैद्युताग्नि सग्रहकर उसकी रक्षा करना अच्छा समझते है। इससे प्रमाणित होता है कि ये लोग पहले इस तरह अग्नि का सग्रह करते थे; बाद मे दो लकडियो को घिसकर अग्नि उत्पादन करना इन्होने सीखा, फिर जब अग्नि-उत्पादन करने के अन्यान्य उपाय उन्होने सीखे, उस समय भी पहले के उपायो का परित्याग नही किया। वे सब उपाय पवित्र आचारो मे परिणत होगये।

हिब्रुओं के सम्बन्ध मे भी यही हाल है। उनके पूर्वज पार्चमेन्ट (Parchment) पर लिखत थे। इस समय वे लोग कागज पर लिखते है, किन्तु पार्चमेन्ट पर लिखना उनकी दृष्टि मे महा पवित्र आचार है। इसी तरह सभी जातियो के सम्बन्ध मे है। इस समय जो आचार शुद्धाचार कहलाये जाते है, वे प्राचीन प्रथा मात्र है। यज्ञ भी इसी तरह प्राचीन प्रथा मात्र थे। कालक्रम से जब लोग पहले की अपेक्षा उत्तम रीति से जीवन-निर्वाह करने लगे, उस समय उनकी सभी धारणायें पूर्व की अपेक्षा अधिक उन्नत हुई, किन्तु ये प्राचीन प्रथाये रह गयीं।