लेकिन मुत्तुकुमरन् को, अपने स्वभाव के विरुद्ध, संयम और शांति बरतते देखकर उसे आश्चर्य हुआ। नयी जगह पर, जहाँ बातचीत तक करने के लिए भी कोई नहीं, मुत्तुकुमरन् को अकेले छोड़कर, जहाज से आनेवाले कलाकारों को लिवा लाने के लिए वह नहीं जाना चाहती थी। उसने सिर-दर्द का बहाना कर इनकार कर दिया । अब्दुल्ला और गोपाल ने कितना ही कहा। पर उसने सुना नहीं। आखिर उन दोनों को लाचार होकर माधवी के बिना बंदरगाह जाना पड़ा। घर में केवल माधवी और मुत्तुकुमरन् रह गये थे। उस एकांत में माधवी की समझ में नहीं आया कि वार्तालाप कैसे शुरू करे, कहाँ से शुरू करे और किन शब्दों से करे? दोनों के बीच थोड़ी देर मौन छाया रहा ।
"मेरे ही कारण आपको ये सारे कष्ट सहने पड़ रहे हैं ! मुझे भी नहीं आना चाहिए था और आपको भी लाकर व्यर्थ कष्ट में डालना नहीं चाहिए था !"
मुत्तुकुमरन् ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह किसी गहरे सोच में पड़ा था । उस का हर पल का वह मौन माधवी को संकट में डाल रहा था ! आखिर वह मौन तोड़कर बोला, "कष्ट-वष्ट कुछ नहीं । मुझे कष्ट देनेवाला कोई मनुष्य अभी पैदा नहीं हुआ। लेकिन तुम जैसी एक युवती से प्रेम करके, वह सच्चा प्रेम अखंड होकर, जब विपक्ष से वापस मिलता है, तब मुझे अपने मानाभिमान, रोष-तोष, कोप-ताप सबको दिल-ही-दिल में रखना पड़ता है। प्रेम की ख़ातिर इतने बड़े-बड़े अधि- कारों को त्यागना पड़ेगा-आज ही मैं समझ पा रहा हूँ। यही बात मुझे आश्चर्य में डाल रही है।".
"इस मामले में अब्दुल्ला घोर असभ्य और जंगली निकलेगा-इसका मुझे ख्याल तक नहीं आया।"
"तुम्हें ख्याल नहीं आया तो उसके लिए दूसरा कोई क्या करे? असभ्यता ही आज पचहत्तर प्रतिशत लोगों में घर किये हुए है। सभ्यता तो एक ओढ़नी मात्र है। जब चाहे. मनुष्य निकालकर ओढ़ लेता है, बस !"-~-मुत्तुकुमरन् ने विरक्ति से उत्तर दिया।
जहाज पर आनेवालों ने आवास पर पहुँचकर दोपहर तक विश्राम किया। तीसरे पहर को, सब अलग-अलग कारों पर सवार होकर पिनांग नगर का पर्यटन करने चल पड़े । सभी सहस्र बुद्ध का पगोडा, साँपों का मन्दिर, पिनांग के पर्वत- प्रदेश और समुद्र-तट की सैर को गये।
माधवी मन-ही-मन डर रही थी कि पिछली रात और सुबह की अवज्ञा और उपेक्षा का ख्याल करके, मुत्तुकुमरल धूमने आने से कहीं इनकार कर दे तो क्या हो ? लेकिन वह वैसी कोई ज़िद न पकड़कर शांतचित्त से चलने को तैयार हो गया तो उसे आश्चर्य हुआ।
वे जहाँ-जहाँ गये, कलाकारों को देखने के लिए लोगों की बड़ी भीड़ लग गयी।