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युद्ध और अहिंसा


या झगड़ों के निपटारे के लिए अहिंसा का दूसरा नाम ही विवेक है। विवेक का अर्थ मध्यस्थ का किया हुआ किसी झगड़े का बाध्यकारी निर्णय अथवा युद्ध नहीं है । मैं अपने विश्वास पर सबसे अधिक ज़ोर यही कहकर दे सकता हूँ कि यदि मेरे देश को हिंसा के द्वारा स्वतन्त्रता मिलना सम्भव हो, तो भी मैं स्वयं उसे हिंसा से प्राप्त न करूंगा । ‘तलवार से जो मिलता है वह तलवार से हार भी लिया जाता है’-इस बुद्धिमानी के बचन में मेरा विश्वास कभी नष्ट नहीं हो सकता । मेरी यह कितनी प्रबल इच्छा है कि हेर हिटलर संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रपति की अपील को सुनें और अपने दावे को जाँच मध्यस्थों द्वारा होने दें, जिनके चुनने में उनका उतना ही हाथ रहेगा जितना कि उन लोगों का जो उनके दावे को ठीक नहीं समझते ।”x



x २९ अगस्त १९३९ को दिया गया वक्तव्य ।