पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२६
युद्ध और अहिंसा


ससार को वह लड़ाई की एक ऐसी ऊँची कला का प्रदर्शन भी करा चुका है, जिसके नैतिक मूल्य की किसी न किसी दिन वह जरूर क़द्र करेगा। इसलिए बिलकुल बावले और उन्मत्त संसार भारतवर्ष को यह कहना है कि मनवता को अगर बीच-बीच में होनेवाले ऐसे विनाशों से बचकर उत्पीड़ित संसार में शान्ति और स मंजस्य लाना है तो उसे आगे क़दम बढ़ाना ही पड़ेगा। जिन लोगों को इस पद्धति से इतना कष्ट उठाना पड़ा है और जो वीरतापूर्वक उसे बदलने के लिए लड़ रहे हैं वेही पूरे विश्वास और इसके लिए आवश्यक नैतिक आधार के साथ न केवल अपनी ओर से बल्कि संसार की समस्त शोषित और पीड़ित प्रजाओं की ओर से बोल सकते हैं।"

मुझे खेद है कि 'क्रानिकल' में प्रकाशित श्रीमती कमलादेवी का पत्र मैंने नहीं देखा। मैं कोशिश तो करता हूँ, फिर भी अखबारों को पूरी तरह नहीं पढ़ सकता! इसके बाद समय के अभाव से पत्र मेरी फाइल में रखा रहा। लेकिन मेरे खयाल में इस देरी से पत्र के उद्देश्य में कोई अन्तर नहीं पड़ा। बल्कि मेरे लिए शायद यही ऐसा मनोवैज्ञानिक अवसर है जब मैं यह जाहिर करूँ कि भारत का रुख क्या है या क्या होना चाहिए। युद्ध करनेवाले पक्षों के उद्देश्यों का कमलादेवी ने जो विश्लेषण किया है उससे में सहमत हूँ। दोनों ही पंजवाले अपने अस्तित्व और अपनी गृहीत नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए ही लड़ रहे हैं। मगर दोनों में एक बड़ा फर्क जरूर है। मित्र-राष्ट्रों की घोषणायें