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असल बात


भी जर्मनों के मौजूदा विचारों को देखते हुए मैं उनके बजाय यह पसन्द करूंगा कि दुनिया पर रूसियों का आधिपत्य भले ही हो। रूसी कम-से-कम "ऊँची नसल" के तत्वज्ञान से तो कोई सरोकार नहीं रखेंगे। भले ही वे बीच बीच के वर्गवालों का सफाया करदं, पर जो बच रहेंगे उनके साथ नीची नसल का सा बताँव तो न करेंगे। मगर जर्मनों के दृष्टिकोण में तो हम सभी के लिए खतरा भरा है। मेरी समभ से इस बारे में कोई भी जोखम उठाना हमारे लिए पागलपन होगा।

“इस बीच दिन-दिन और घंटा-घंटा करके कीमती समय चला जा रहा है और हिन्दुस्तान ने श्रभी तक यह विश्वास नहीं करा दिया है कि वह अंग्रेज़ों की परेशानी का कारण नहीं बनेगा। यह देखकर क्या संसारभर में नाज़ीवाद की शक्तियों का हौसला और बल नहीं बढ़ेगा? मुझे नहीं दीखता कि इससे गैर-यूरोपियन जातियों की या जगत को कोई सेवा होगी।”

इसका मैंने नीचेलिखा उत्तर दिया है-:

“कोई अन्धविश्वास भले कहे तो भी मुझे एक चीज़ से प्रेम है। जब किसी मामले में दोनों ही तरफ़ अनीति न हो और मुझे कोई शंका हो कि किधर जाऊँ तो मैं चितपट कर लेता हूं और उसमें मुझे सचमुच ऐसा लगता है कि ईश्वर का हाथ है! मेरा और कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। मेरी राय में अन्तिम सत्ता ईश्वर में ही मानना वैज्ञानिक तरीका है। मौजूदा संकट में भी मैंने एक तरह के चितपट का आश्रय लिया है। अगर मेरी ही