प्राचीन चिह्न/ढाई हज़ार वर्ष की पुरानी क़बरें

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१३——ढाई हज़ार वर्ष की पुरानी क़बरें

इँगलेंड में कार्नवाल एक सूबा है। उसके उत्तर, समुद्र के किनारे, “हारलीनबे" नामक एक जगह है । वहाँ कोई ढाई हज़ार वर्ष की पुरानी कबरें निकली हैं। इतनी पुरानी कबरे आज तक किसी और पश्चिमी देश में नहीं निकली थीं। इन कबरों के भीतर मनुष्यों के जो अस्थिकङ्काल निकले हैं वे सम्पूर्ण रूप से अच्छी दशा में हैं। जिन लोगों की ये हड्डियाँ हैं वे किस समय में थे और उनका जीवन-व्यापार कैसा था, इस विषय का विचार अनेक पाश्चात्य विद्वान इस समय कर रहे है।

इन कबरों के निकलने के पहिले “हारलीनबे" का कोई नाम तक न जानता था। वहाँ बस्ती भी कम थी। परन्तु इसकी रमणीकता और प्राकृतिक सौन्दर्य पर मोहित होकर रेडी नाम के एक साहब ने कुछ जमीन वहाँ पर लेकर उस पर मकान बनाना चाहा। मकान की नींव खोदने में, १४ फुट की गहराई पर, रेडी साहब को एक कबर मिली। यह कबर एक ऐसे तहखाने में थी जो स्लेट नाम के एक बहुत मुलायम और खूबसूरत पत्थर का बना हुआ था। इस कबर के भीतर हड्डियों के साथ हजारों वर्ष के पुराने कुछ ऐसे ज़ेवर और औज़ार निकले जो इस कबर की प्राचीनता के सूचक थे। इस पर जो और ज़मीन खोदी गई तो मालूम हुआ कि
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हैं एक बहुत ही पुराना कबरिस्तान है——उस समय का जब कि ब्रांज नामक धातु के औज़ार काम मे आते थे।

इसकी खबर कार्नवाल की रायल सोसायटी को दी गई और चन्दे से बहुत सा रुपया जमा करके यह जगह अच्छी तरह खादी गई। काई पचास हजार मन रेत और मिट्टी के नीचे दबी हुई सैकडों कबरे यहाँ पर मिली। कितने ही कङ्काल अच्छी हालत मे जैसे के तैसे मिले। स्लेट के बने हुए कितने ही तहखाने भी अच्छी हालत में मिले। हड्डियों के साथ जो चीज़े निकली वे, अत्यन्त पुरानी होने के कारण, बड़े ही महत्त्व की समझी गई।

जो अस्थिकङ्काल और चीजें इन क़बरो मे मिली उनमे से कुछ तो एक अजायबघर मे रक्खी गई हैं और कुछ वही पर, एक मकान में, शीशे के छोटे-छोटे बक्सो मे। जो चीजें मिलो हैं उनमे से कितने ही कर्प, अँगूठियाँ, कड़े और छोटी-छोटी गोलियाँ हैं। स्लेट और शङ्ख की भी कितनी ही चीजें हैं। कई चीजों के ऊपर तरह-तरह के भहे चित्र खुदे हुए हैं, जिससे साबित होता है कि ढाई-तीन हजार वर्ष पहले वहाँ के लोगों को नक्श की हुई चीज़े पहनने का शौक़ हो चला था।

वहाँ पर जो खोपड़ियाँ निकली हैं उनमे से बहुत सी इतनी अच्छी दशा मे हैं कि उन्हे देखकर शरीर-शास्त्र के जानने-वाले झट पहचान जाते हैं कि ये स्त्रियो की हैं या पुरुषो की । दॉत तक इन खोपडियों में से किसी-किसी मे अभी तक पूर्ववत्
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बने हुए हैं। इन खापड़ियों में एक यह विचित्रता है कि इनकी शक्ल कुछ-कुछ बन्दरों की खोपड़ियों से मिलती है। ऊपर का हिस्सा तो छोटा है, पर नीचे का जबड़ा बड़ा। हड्डियो को देखने से मालूम होता है कि इन लोगों की उँचाई ५ फुट ४३ इञ्च रही होगी।

इस कबरिस्तान मेंं छः कबरें खोदकर खुली हुई छोड़ दी गई हैं। उनके ऊपर शीशे के घर बना दिये गये हैं। कबरो में पाई गई हड्डियाँ साफ़ करके जैसी की तैसी रख दी गई हैं। किसी कबर में एक ठठरी है, किसी मे दो और किसी मे ज़्यादह ठठरियाँ, बैठी हुई दशा में, हैं। उनके घुटने ऊपर को ठुड्ढी से लगे हुए हैं। एक कबर की हड्डियाँ नीचे पड़ी हुई हैं। कई हड्डियों पर चोट के चिह्न हैं। कुछ हड्डियाँ चिपटी हो गई है। बहुत लोगो का ख़याल है कि उस जमाने में लोग मनुष्यों का बलिदान देते थे। जब कोई दावत या धार्मिक काम होता था तब एक-आध आदमी का बलिदान ज़रूर किया जाता था। उसकी हड्डियाँ तोड़-फोड़कर कबर में गाड़ देते थे। एक कबर के भीतर एक खोपड़ी मिली. जो कई जगह से टूटी है। नाक की हड्डी कटी हुई है। तीन दॉत अपनी जगह से हटकर नीचे के जबड़े में घुस गये हैं। इससे मालूम होता है कि जिस आदमी का बलिदान दिया जाता था वह बुरी तरह से मारा जाता था। उसका सिर पत्थर या किसी और औजार से तोड़ दिया जाता था ।
[ ११८ ]जितने पुरातत्त्व-विद्वानों को इन कबरों की हड्डियाँ और कङ्काल दिखलाये गये सबने यही राय दी कि ये कबरे ढाई हजार वर्ष से कम पुरानी नहीं हैं, अधिक चाहे हों। किसी-किसी का यह खयाल है कि ये उस समय की क़बरें हैं जब रोमन लोगो के .कब्जे मे इँगलिस्तान नहीं आया था। लगभग तीन हजार वर्ष पहले लोगो के सिर गोल नहीं होते थे। वे कुछ-कुछ चिपटे होते थे। उसी समय की ये कबरे हैं। दांतों की परीक्षा से मालूम होता है कि जिन लोगों के ये दॉत हैं वे अनाज अधिक खाते थे, मांस कम ; क्योंकि दॉत बहुत घिसे हुए हैं। मालूम होता है कि तब तक इन लोगों के पास शिकार करने के लायक कोई अच्छे शस्त्र न थे। इन कबरों मे एक भी सिक्का नहीं मिला, जो इनकी प्राचीनता का बहुत बड़ा प्रमाण है।

[जून १९०८


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