बाल-शब्दसागर
अर्थात्
हिंदी-शब्दसागर
का
बालकोपयोगी संस्करण संकलनकर्ता
श्यामसुंदरदास प्रकाशक
इंडियन प्रेस, लिमिटेड, प्रयाग १९३५
प्रथम संस्करण]
Published by
K. Mittra,
at The Indian Press, Ltd.,
Allahabad.
Printed by
A. Bose,
at The Indian Press, Ltd.,
Benares-Branch.
भूमिका
काशी नागरी प्रचारिणी सभा जिन दिनों 'हिंदी-शब्दसागर' के बृहत् और प्रामाणिक कोष का प्रणयन करा रही थी उन्हीं दिनों मुझे उसके एक संक्षिप्त संस्करण की आवश्यकता का अनुभव हो गया था। 'शब्दसागर' के बृहदाकार में ही उसे संक्षिप्त करने की प्रेरणा निहित है और उसकी प्रामाणिकता एक ऐसी दृढ़ नींव है जिस पर हिंदी-भाषा-कोष के छोटे-बड़े अनेक भवन बनाए जा सकते हैं तथा वे अपनी दृढ़ता के कारण शताब्दियों तक हिंदी-भाषी जनता के भाषा-भवन का काम दे सकते हैं। मेरे सामने प्रश्न इतना ही था कि उक्त संक्षिप्त संस्करण का स्वरूप क्या हो और वह सिद्धांत तथा व्यवहार की किन दृष्टियों को सम्मुख रखकर प्रस्तुत किया जाय।
'हिंदी शब्दसागर' में मूल शब्दों की संख्या प्रायः एक लाख तक पहुँची है, जो भारतीय भाषाओं के कोषों की तुलना में सबसे बढ़ी हुई कही जा सकती है। इस संख्या के द्वारा हिंदी अपनी राष्ट्र-भाषा बनने की योग्यता को एक ओर सिद्ध कर सकी और दूसरी ओर वह संसार की अन्य उन्नत भाषाओं के समकक्ष रखे जाने का पुष्ट प्रमाण भी दे सकी। 'हिंदी-शब्दसागर' के द्वारा इन दोनों ही उन्नत लक्ष्यों की पूर्ति हुई। इन दोनों ही लक्ष्यों का महत्त्व राष्ट्रीय और जातीय सभ्यता तथा संस्कृति की दृष्टि से कितना बड़ा है, यह वे अच्छी तरह समझ सकते हैं जो भाषा के विस्तार, सौंदर्य और उन्नति को उस देश के और उस समाज के विकास का मापदंड मानते हैं। यहाँ उसकी अधिक व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं। प्रसन्नता की बात है कि 'हिंदी-शब्दसागर' का महत्व भारतीय और विदेशी विद्वानों ने बहुत कुछ समझ लिया है और समय की गति के साथ अधिकाधिक समझते जायँगे।
मैं यह स्वीकार करता हूँ कि अँगरेजी तथा कुछ पाश्चात्य भाषाओं के बड़े बड़े कोषों में शब्दों की संख्या 'हिंदी शब्दसागर' की अपेक्षा द्विगुणित और त्रिगुणित भी है, परंतु यदि ध्यानपूर्वक देखा जाय तो इसका एक प्रधान कारण उनमें विज्ञान की अनेकानेक शाखाओं के सहस्रों पारिभाषिक शब्दों की बहुलता ही है। नित्यप्रति व्यवहार में आनेवाले अथवा कवियों और साहित्यिकों के द्वारा प्रयुक्त होनेवाले शब्दों की संख्या की तुलना में 'हिंदी शब्दसागर' किसी भी विदेशी भाषा के सम्मुख संकुचित नहीं हो सकता। इस बात को पुष्ट करने के लिये भी शब्दसागर के एक संक्षिप्त संस्करण की—जिसे व्यावहारिक तथा बालकोपयोगी संस्करण भी कहा जा सकता है—आवश्यकता समझ पड़ती थी। अतः इस संस्करण का संपादन करते हुए मैंने मूल शब्दसागर के शब्दों को कम करने की उतनी चेष्टा नहीं की जितनी शब्दों के पर्यायों और लाक्षणिक प्रयोगों (मुहाविरों) को घटा देने तथा शब्दों की व्युत्पत्ति छोड़ देने का उपक्रम किया है। इस कार्य में मुझे सभा की ओर से प्रकाशित, श्रीयुक्त रामचंद्र वर्मा द्वारा संपादित, 'संक्षिप्त हिंदी-शब्दसागर' का आाधार और आभार स्वीकार करना चाहिए। वर्माजी के 'संक्षिप्त हिंदी-शब्दसागर' और प्रस्तुत संस्करण में मुख्य अंतर यही है कि इसमें शब्दों की संख्या उससे विशेष न्यून न होती हुई भी इसका आकार लगभग उसका आधा कर दिया गया है।
मेरा यह विश्वास है कि व्यावहारिक दृष्टि से यह क्रिया हानिकारिणी नहीं हुई वरन् यह साधारण जनता और विद्यार्थियों के लिये अधिक ग्राह्य और अभीष्ट हुई है। साथ ही यह बात भी ध्यान में रखी गई है कि जहाँ 'संक्षिप्त-हिंदी -शब्दसागर' कालेज के विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है वहाँ यह संस्करण विशेषकर स्कूली विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रस्तुत किया गया है।
इस प्रकार हिंदी शब्दसागर का यह व्यावहारिक संस्करण जिन उद्देश्यों को सम्मुख रखकर प्रस्तुत किया गया है, आशा है, उनकी पूर्ति इससे हो सकेगी। इसका नाम 'बाल-शब्दसागर' इस आशय से रखा गया है कि यह मूल 'शब्दसागर' की सबसे लघु और सबसे नवीन संतान है और इसका उपयोग विशेषतः स्कूली विद्यार्थियों द्वारा ही सबसे अधिक किए जाने की संभावना है। परंतु सिद्धांत और व्यवहारोपयोगिता के विचार से इसे संपूर्ण हिंदी जनता की वस्तु बनाने की चेष्टा भी की गई है।
श्यामसुंदरदास
अ॰ = अरबी भाषा | प्रत्य॰ = प्रत्यय |
अनु॰ = अनुकरण शब्द | प्रे॰ = प्रेरणार्थक |
अल्पा॰ = अल्पार्थक प्रयोग | फा॰ = फ़ारसी भाषा |
अव्य॰ = अव्यय | बहु॰ = बहुवचन |
उप॰ = उपसर्ग | भाव॰ = भाववाचक |
क्रि॰ = क्रिया | वि॰ = विशेषण |
क्रि॰ अ॰ = क्रिया अकर्मक | व्या॰ = व्याकरण |
क्रि॰ वि॰ = क्रिया-विशेषण | सं॰ = संस्कृत |
क्रि॰ स॰ = क्रिया सकर्मक | सर्व॰ = सर्वनाम |
दे॰ = देखो | स्त्री॰ = स्त्रीलिंग |
पुं॰ = पुँल्लिंग | हिं॰ = हिंदी |
☀ यह चिह्न सूचित करता है कि यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त होता है।
† यह चिह्न सूचित करता है कि इस शब्द का प्रयोग प्रांतिक है।
‡ यह चिह्न सूचित करता है कि शब्द का यह रूप ग्राम्य है।
अँकाना—क्रि॰ स॰ मूल्य निर्धारित कराना। अंदाज़ कराना। परखाना।
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