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भारतेंदु-नाटकावली/७–नीलदेवी (पहला दृश्य)

विकिस्रोत से
भारतेंदु-नाटकावली
भारतेन्दु हरिश्चंद्र, संपादक ब्रजरत्नदास

इलाहाबाद: रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर, पृष्ठ ६०५ से – ६०६ तक

 

नीलदेवी
ऐतिहासिक गीतिरूपक
(वियोगांत)

पहला दृश्य
स्थान––हिमगिरि का शिखर
(तीन अप्सरा गान करती हुई दिखाई देती हैं)

अप्सरागण––(झिंझौटी जल्द तिताला)

धन धन भारत की छत्रानी।
वीरकन्यका वीरप्रसविनी वीरवधू जग-जानी॥
सतीसिरोमनि धरमधुरंधर बुधि-बल धीरज-खानी।
इनके जस की तिहूँ लोक में अमल धुजा फहरानी॥
सब मिलि गाओ प्रेमबधाई।
यह संसार-रतन इक प्रेमहि और बादि चतुराई॥
प्रेम बिना फीकी सब बातैं कहहु न लाख बनाई।
जोग ध्यान जप तप व्रत पूजा प्रेम बिना बिनसाई॥

हाव भाव रस रंग रीति बहु काव्य केलि कुसलाई।
बिना लोन बिंजन सो सबही प्रेम-रहित दरसाई॥
प्रेमहि सो हरि हू प्रगटत हैं जदपि ब्रह्म जगराई।
तासों यह जग प्रेमसार है और न आन उपाई॥