भारतेंदु-नाटकावली/७–नीलदेवी (पहला दृश्य)

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भारतेंदु-नाटकावली  (1935) 
द्वारा भारतेन्दु हरिश्चंद्र

[ ६०५ ]

नीलदेवी
ऐतिहासिक गीतिरूपक
(वियोगांत)

पहला दृश्य
स्थान––हिमगिरि का शिखर
(तीन अप्सरा गान करती हुई दिखाई देती हैं)

अप्सरागण––(झिंझौटी जल्द तिताला)

धन धन भारत की छत्रानी।
वीरकन्यका वीरप्रसविनी वीरवधू जग-जानी॥
सतीसिरोमनि धरमधुरंधर बुधि-बल धीरज-खानी।
इनके जस की तिहूँ लोक में अमल धुजा फहरानी॥
सब मिलि गाओ प्रेमबधाई।
यह संसार-रतन इक प्रेमहि और बादि चतुराई॥
प्रेम बिना फीकी सब बातैं कहहु न लाख बनाई।
जोग ध्यान जप तप व्रत पूजा प्रेम बिना बिनसाई॥

[ ६०६ ]

हाव भाव रस रंग रीति बहु काव्य केलि कुसलाई।
बिना लोन बिंजन सो सबही प्रेम-रहित दरसाई॥
प्रेमहि सो हरि हू प्रगटत हैं जदपि ब्रह्म जगराई।
तासों यह जग प्रेमसार है और न आन उपाई॥