भारत के प्राचीन राजवंश/लेखक का परिचय

विकिस्रोत से
[  ]

लेखकका परिचय ।

मै साहित्याचार्य पण्डित विश्वेश्वरनाथ शास्त्रीको संवत् १९६६ से जानता हूँ, जब की वे जोधपुर राज्यके काटिक मागिरल डिपार्टमेन्टमें नियत किये गये थे। इस महकमेका एक मेम्बर मैं भी था। इस महकमेमें इतिहाससे सम्बन्ध रसमकाली डिंगल भाषासे रिता गगह की जाती थी। इन महकमेने काम करनेमे इतिहास में रुच हुई और समय पर बद्दी रुचि याये टा साधारण इतिहासकी इको पारसर, पुरातत्वानुसन्धान अर्थात पुराने राजके ऊँचे दरजे तक जा पहुची, जो की पुरानी लिपिमे लिखे संस्कृत प्राकृत आदि भाषओ शिलालेख ताम्रपत्र और सिक्को आधारपर की जाती है।

ये संस्कृत और अंग्रेजी तो जानते ही थे, केवल पुरानी लिपियोंकी सीख्नेकी आवश्यकता थी। इसलिए ये मेरा पत्र लेकर राजपूताना म्यूजियम (अजायब घर) सुप्रिटेंटदेंट रामबहादुर पण्डित गौरीशंकर ओझा से मिले और उनसे इन्हो ने पुरानी लिपियोको पड़ना सीखा।

जिम समय ये अजमेरमें पुरानी लिपियोको पड़ना सीखते थे उस समय इन्होंने बहुत से सिक्के आदिके कास्ट बाना कर मेरे पास भेजे थे, जिन देख मैंने समझ लिया था कि ये भी ओझाजिकी तरह किसी दिन हिन्दी साहित्यको कुछ पुरातत्व सम्बन्धी ऐस रत्न भेट करेगा, जिनसे हिन्दी साहित्यकी उनति होगी। मुझे यह देख बङ हर्ष हुआ कि मेरा वह अनुमान ठीक निकला।

इनका इन्चरेग देख करने भी इनकी सहायता की और कुछ समय बाद इन्हे जोधपुर (मारवाड) राज्याका अजायबघर की ऐसिस्टैण्डका पद मिला। उम समय यहाँका अजायबघर केवल नाम मानस था। परन्तु इनके उद्योगसे इसमें बहुत उन्नति हुई। इसमे पुरातत्त्वविभाग खोला गया और इसका दिन दिन तरक्की [  ]करता हुआ देख भारतगवर्नमेन्ट ने भी इसे अपने यंहाके रजिस्टर्ड म्युजियमोकी फेहरिस्तमें दाखिल कर लिया, जिमसे इस अजायबघर को पुरातनसम्बन्धी रिपोटे, पुस्तकें और पुराने सिके वगैरा मुफ्त मिलने लगे। इसके बाद इन्होने गर जोधपुर में पहले पहल राज्य की तरफ से पब्लिक लाइब्रेरी (सार्वजानिक पुस्तकालय) खोली गई और इनकी देख रेख में आज वह अजायबघर के साथ ही गय नये दगपर सपौंगमुन्दर पुस्तकालय रूप में मौजूद है।

इसी अरसे में जोधपुर गाउपर जसवन्त-कालेज में संस्कृत प्रोफेसर का पद खली हुआ और शास्त्रीजी ने अपने म्यूजियम और लाइब्रेरी के कामके साथ साथ ही करीब सवा वर्ष तक यह कार्य भी किया। इनका बर्ताव अपने विद्यार्थियों के साथ हमेशा सहानुभूतिपूर्ण रहता था और इनके समयमे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की एम. ए. और बी. ए. परीक्षा में इनके पढाये विषयो का रिजल्ट सेन्ट पर सेन्ट रहा।

हाला कि इनको यंहा पर अधिक वेतन मिलने का मौका था, परन्तु प्राचीन शोध में प्रेम होने के कारण इन्होंने अजायब घर में रहना ही पसन्द किया। इसपर राज्य की तरफ से आप म्यूजियम (अजायब घर) और लाइब्रेरी (पुस्तकालय) के सुपरिटेण्डेन नियुक्त किये गये। तबसे ये इस पद पर है और राज्य तथा गवर्नमेन्ट के अफसरो ने इनके काम को मुक्तक्ष्ठ से प्रशंसा की है।

इन्होने सरस्वती आदि पत्रो मे कई ऐतिहासिक लेखमालाएँ लिखी और उनका रामहरूप यह 'भारत के प्राचीन राजवंश का प्रथम भाग है। इससे हिन्द के प्रेमियो का भी आज से करीब २००० वर्ष पहले भामा बहुत कुछ सचा हाल मालूम हो सकेगा।


क्षत्रप-वंश ।

इस प्रथम भाग में सबसे पहले क्षत्रपवंशी राजाओं का इतिहास है। वे लोग विदेशी थे और किस तरह भालोर (मारवाड राज्य में) के पठान जो की खान कहलाते थे हिन्दी में लिये पों और परवानों में 'महाखान' लिखे जाते थे, उसी तरह क्षत्रपों के सिक्कों में भी छत्र शब्द के साथ 'महा' लगा मिलता है।

क्षत्रपों के सिक्कों पर खरोष्ठी लिपि के मेल होने से इनका विदेशी होना ही सिद्द होता है, क्योंकि मामी लिपि तो हिन्दुस्तान की ही पुरानी लिपि थी पर युनानी [  ]और खरोष्ठी लिपि सिकन्दर के पीछे उसी तरह इन देशोंमें दाखिल हुई थी, जिस तरह मुसलमानी राज्योंमें अरबी, फ़ारसी और तुर्की आचुकी थी। मगर भारतकी असल लिपि ब्राह्मी होनेसे मुसलमानी सिक्कोपर भी कई सो बरसो तक उसीके बदले हुए हिन्दी अक्षर लिखे जाते थे।

सिकन्दरने ईरान फतह करके पंजाब तक दखल कर लिया था और अपने एशियाई राज्यकी राजधानी ईरानमें रखकर ईरानियोके बड़े राज्योको कई सरदारोंमें बाँट दिया था जो संतरफ कहलाते थे। मुसलमानी इतिहासोंमें इनको 'तवायफल-मदक' अर्थात पुश्वर राजा लिखा है। इनमें असमानी परावेरे राजा मुख्य धे भौर ने ही हिन्दुस्थागमें आएर शक कहलाने मौ थे। उन्होंने ही बिटम सम्बद १३५ में शक राम्बा, चलाया था। यही पार सम्बत् अननपके मिले दुए शनपोक ११ लेखी मीर (शम सम्बत् १० से ३०४ तक) मियोंमे मिलना है। 3-0 वर्षों तद धनोवा राज्य रहा था। शान पारतियोंके पुराने शिला-लेयाम और आसार भजम नाम अपने क्षपादकी जगह छापभाम' शब्द रिखारे । यह भा क्षय शल्दप्स मिलता हुआ ही है और इसका अर्थ काशाई है। सरोः लिपि अरबी फारसाकी तरह पहनी तरफ्ते बाई सरफमा लिखा जाती या। इसीका दूसरा नाम गांधारी लिपि भी था। सनाद लाशये कई लेख इस लिपिने लिखे गये हैं। परन्तु पारसके पुराने लेरनीकी लिपि हिन्दीगी नरह पाईम पाई तरफको लिखी जाती थी। इस लिपिके अक्षर फालके माफिक हानेस यह मारा नामस प्रसिद्ध है। गुजरातो पारसियोंने इसका नाम वालोरीका लिपि क्या है । इरास मा वहो मतला निकलता है। उसका नमूना पृय दिया जाता है। १ सतरफ शब्द बहुत पुराना है । जरदस्त नाम के सीसरे सण्डमें लिखा है कि मादशाह दराएम (दारा) ने पिका पत्तका सण्डा सिंध नदी के किनारे सिंगल (यूप)के किनारेतक फहराता था अपनी इस इतना धनी अमरदारको २० सूर्वो- में चाँदर एक एक सूना एव एषा सतरपको सौंप दिया था जिन बम गिराजक सिंहाय दूसरी लागे भी लिया करता था। [  ]'आगारे अजम' में लिखा है कि पहले 'मीखी' अक्षरोको आर्या कहते थे। यह नाम ठीक ही प्रतीत होता है, क्योंकि उसमें लिखी हुई भाषा आर्य संस्कृत से मिलती हुई है।

दूसरी पुरानी लिपि पारसियोकी पहलवी थी। इसके भी बहुत से शिलालेख मिले हैं। इसके अक्षरोका आकार कुछ कुछ खरोष्टि अक्षरोंसे मिलता हुआ है। परन्तु यह दाहिनी तरफसे लिखी जाती भी।

तीसरी लिपि सद अवस्ताकी पुरानी प्रतियोमें लिखी मिलती है। यह पुस्तक जरदश्ती अर्थात अग्निहोनी पारसियोंके धर्मकी है। इसी लिपि ? लिपिकी तरह दाहिनी तरफसे लिखी जाती थी। परन्तु इसमें लिखी इबारत संस्कृत से मिलती है अरबीसे नहीं। बड़ा आशचर्य है कि आर्यभाषा सिमेटिक ( अरबी ) जैसे अक्षरोंमें उल्टी तरफसे लिखी जाती थी। यह विषय बड़े वादविवादका है। इस लिये इस जगह इसके बारेमे ज्यादा लिखनेकी जरूरत नहीं है।

क्षत्रपोंके समयकी ब्राह्मी और खारोष्टिका नक्शा तो साहित्याचार्यजीने दे दिया है परन्तु ऊपर पहल्वी और अवस्ताका जिक्र आजानेसे इतिहासप्रेमियोंके लिये हम उनका भी नक़्शे आगे देंते है।

क्षत्रपोंके समयके अंकोका हिसाब भी, विचित्र ही था। वैसे कि पुस्तकमे प्रकट होगा। मारवाड़ राज्यके ( नागोर परगनेो मागलाद गौत्रमे ) दधिमा माना शिलालेख संवत २८९ भी इसी प्रकार खोदा गया है। जैसे - (२००) + (८०) + (९)

क्षत्रपोंके यंहा बड़े भाईके बाद छोटा भाई गद्पदी पर बैठता था। इस तरह जब सब भाई राज कर चुकते थे तब उनके बेटोकी बारी आती थी। यह रिवाज तुर्कोसे मिलता हुआ था। टर्की (रूस) में वंशपरम्परासे ऐसा ही होता आया है और आज भी यही रिवाज मौजूद है। ईरानके तुर्क बाद्शाहोमे यह किचनमा सुनी गई है कि जिस राजकुमारके माँ और बाप दोनों राज घरानेसे हो तभी उनका उत्तराधिकारी हो सकता है। राज्पूतानेकी मुसलमानी रियासत तकमे भी कुछ ऐसा ही कायदा है। कि गद्दी पर नवाबका ही लड़का बैठ सकता है जो माँ और बाप दोनोंकी तरफसे अर्थात नवाब अमीरुद्दौल्लाकी औलाद है। [ १० ]
[ ११ ] 
[ १२ ] 
[ १३ ]क्षत्रपोंके रिकार्डो आदिसे इस बातका पता नहीं चरता कि वे अपने देशसे कौनसा धर्म लकर आये थे। सम्भव है कि वे पहले जरदशती धर्म माननवाले हो, जो कि सिकन्दरसे बहुत पहले इरानमें जरदश्त नाम के पैगम्बरने चलाया था। फिर यहाँ आकर वे हिंदू और बौद्ध धर्मको मानने और हिंदुओ जैसे नाम रखने लगे थे।


हैहयवंश।

क्षत्रप वंशके बाद हैहय-वंशका इतिहास दिया गया है। साहित्याचार्यजीने इसको भी नई तहकीकातके आधारभूत शिलालेखो और दानपनों के आधार पर तैयार किया है। इतिहासप्रेमियोको इससे बहुत सहायता मिलेगी।

यह (हैहय) वंश चन्द्रवंशीराजा यदुके परपोते हैहयसे चला है और पुराने ज़मानेमें भी यह वंश बहुत नामी रहा है। पुराणोंमें इसका बहुतसा हाल लिखा मिलता है। परन्तु इस नये सुधारके जमानेमे पुराणोकी पुरानी बातोसे काम कंहा चलता। इस लिये हम भी इस वंशके सम्बन्धने कुछ नई बातें लिखते हैं।

हैहयवंशके कुछ लोग महाभारत और अग्निपुराणके निर्माणकालमें शौष्टिक (कलाल) कहलाते थे और कलचुरी राजाओंके शासन में भी उनको हैहयोंकी शाखा लिया है। ये लोग शैव थे और पाशुपत पथी होने के कारण शराब अधिक काममें लाया करते थे। इससे मुमकिन है कि ये या इन सम्बन्धी शराब बनाते रहे है। और इसीसे इनका नाम कलचुरी हो गया है। संस्कृतमें शराबको 'वल्य' कहते है और 'चुरि' का अर्थ 'चुआनेवाला' होता है।

उनमें जो राजघरानके लोग थे वे तो कलचुरी कहलाते थे और जिन्होंने शराबका व्यापर शुरू कर दिया थे 'वल्यपाल' कहलाने लगे, और इसीसे आजकलके कलकर था कलाल शब्दकी उत्पत्ति हुई है।

जातियोंकी उत्पत्तिकी खोज करनेवालोको ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल सकते है। राजपूतानेकी बहुत सी जातियाँ अपनी उत्पत्ति रातपूतानो की बताती हैं। वे पुरबकी कई जातियोंकी तरह अपनी वंशपरम्पराका पुराने क्षत्रियोंसे मिलनेका दावा नही करता जैसे कि उधरके कलवार, शॉडिक और हैहयवशी होने का करते हैं। [ १४ ]________________

मरवाहमें कलालोंकी एक शाखा है वह अपनी उपप्ति टाक जानिक राजपूतोंसे चता है। मी प्रकार गुनरात माशाह भी 'टाक-गोत' से पलाये ही थे और दारावरे कारधारने ही इनो वादगाही चिली पी । नरे इतिहासोंमें मी नको 'शक' लिया है, और इनके हालात कहलानेका यह सपन दिया है कि, इनका गलपुरुष गाडू बाइ-उलमुक, जो कि फीरोनशाइदा साला था अमीरोंमें दाखिन होने में कइल ज्यश सरारदार (शराबड़े शंटारसा अधिकारी) घर। दगी प्रचार नागोरके पुराने बईग खानजादे भी कलाल ही में। अबतक एक भा ऐनी दिनाय नही मिली है जो हिदुस्तानो पुराने राजाओके ममयक राज्यारन्धा हाल बतलाने । पर भय सपर जो रि, दो पीटीकाही तातारसेभाया ना था और जिन राज्यका सव इन्तिमाम यही हिन्दू समस्तमान विद्वानो हापनें था, अपने प्रवचरे लिये अच्छा मिना आता है, तर फिर पादिमोसे जमे हुए विद्वान् राजाओचा प्रयध तो क्यों नहीं अच्छा होगा। इसके दाहरणस्तरूप हम राजाधिराज करचुरी कर्णदपक एप दानपत्र असहान पाली इस बातें लिखते है "राध्यरा ETम ई भागेमि बना हुआ था, जिसके बडे बडे रूफ्सर थे। एक साधी राजममा भी, निमम बैंड कर ला, युबराम और सभासदों रास्ताइसे, काम किया करता था। इन सभासदकोदेस्क्व र नगरा मुगल बादशाहों अरफान दोस्त (राममंत्रियों से मिलते हुए ही थे१ महामनी- पर-दत्त-सदानत (प्रतिनिधि) २ महामात्य-नीन-ए थानम । ३ मदासामन्त सिपहसालार (मीर-दल-दमय, सम्बरवानीन)। महापुरोहित-सदर-उल-रिदिर (घमाधिकारी)। महाप्रतीहार-मीरमजिन्छ । - महाक्षरित्र-मीमुनी (मुनी-उल-मुन्दन )। ७ महानमान-मीरअर । ८ महाश्वगायनिक-भौर-भापुर ( भग्नता नी1 (१) मारणार की ममममारांकी रिपोर्ट गा १८९१, पृ०1 [ १५ ]________________

९ महामाण्डागारिक-दीवान खज़ाना । १. महाप्यश्च नाजिरफुल। इसी प्रकार हरएक शासन विभागके लेखक (अहलकार ) भी अलग अलग होते थे; जैसे धर्म विभागका लेखक-घमैलेखी।" मी तरपनने यह भी जाना जाता है कि जो काम आजकल बंदोबस्तका महक्मा करता है यह उस समय भी होता था। गाँव के चारों तरफ़का नहरें भी होती थी । जहाँ कुदरती हर नदी या पदाइ वगरहकी नहीं होती थी वहाँ पर लाई बहादकतं. यना ली जाती थी। दफ्तरामें दबंदीचे प्रमाणस्वरूप यस्ती, खेत, बाग, नदी, नाला, लि, तालाब, पहार, जंगल, घास, आम, महुआ, गढ़े, गुफा मगरह जो पुछ भी होता था उसका दाखला रहता था, और तो म्या भाने जानेके रास्ते भी दर्ज रहते थे। जय किसी गाँवका दानपन लिया जाता था तर उसमें माफ नौरसे चोल दिया जाता था कि फिर किम चीजका अधिकार दान सेने बालेश होगा और किस किसका नहीं मन्दिर,गोचर और पहले दान की हुई जमीन उसके अधिकारसे चादर रहती थी। कलयुरियाका राज्म, उपके शिलालेखोंमें, निकलिंग अर्थात कलिंग नामफे तीन मौॉपर और उनके बाहर तक भी होना लिसा मिलता है । सम्भर है कि सद्ध यहाकर लिया गया हो । पर एक यातसे यह सही जान पड़ता है। मह यह है कि इन्होंने अपने गुरुगुर पाझरतपय नहन्तीको ३ लारा गाँच दान दिये थे। यह संत्या गाधारण नहीं है । परन्तु वे महन्त मी आजवलके महन्त बसे स्थायी नहीं कि मुगी, माहिमसेवी, उदार और परमा थे। में अपनी इस पड़ी भारी जागारकी भागदनाको दोहितके काम आते थे । इन महन्तमस विश्वेश्वर शंभ नामक महन्त; जो कि संपन् १३.. के भाप्रपाम वियनान् पा बड़ा ही गमन, दाल और धर्माला या । इसने गर जातिमोरे मि सदावत खोल देने शिकार एवापाना, दाईलाना और महाविद्यालयका भी प्रबन्ध किया था। संगीतकारा और पाला नाच श्रीर मामा मिसाने व्येि कामीर देशा नये भार फत्या पुरुषाये थे। () उपर ज्योति । [ १६ ]________________

जा पुम्पाय दी हुई नागानें ऐसा होता था तर पत्चुरी रानारं अपने सपने तो और भी परे बड़े राहिला कान होते होगे। परन्तु उनसरिता पूरा विदा मनिलम एवारी है। बलरला रायके साथ ही उनकी जाति भी सता रहा। अब वह कोई उनका नाम मय नही सुना जाना है। पिया के कुछ रोग बर मयदा, मयुक्तपत्त और बिहारमें पाये रते है 1 हनको मुन्शी मदन गोपात्म पदा का है किरतनपुर ( मध्यप्रदेश) में हेहपापियोका राय उन्ले त पुरा शिवामगे बला भातः था । पर यहाँ ५. स पनाया हवा मरोन रखनपुरले निकाल कि । जसरा औलादमें मापार सह इन समय टमी पिलमें . जागारदार हैं । यह रालपुर शिवनाम मेयपर माया पा। मगुरुपान्तम दलदी निछ बतियने दिया है। परन्तु के अनो सूरजम बताते हैं। ऐम ही कुछ हट्यपी बिहार मी नुने जाते हैं. निन् म उछ उनादारा परमार-वश। हैन्याशके बाद परमार बजका इनिहाय लिया गया है। भानमाल ( मारला) में पहले पहत इम (पार ) सका शाब कपडन कायम दुःथा । यह भासा पराभेश और देवरा का पे'न' मा । परमारिआ पर अधिकार करने पर दलिनीके पर रायो भन्से छानन म प्रया पर अपना सच कायम किया था । ___भापू मिलाले में परमारने पूल पुष्पका नाम धूमार दिया है। सरकार और मल के पार राजा भी नाका भोलाइ धे। इन ऊपर जिप च है के नमसनने भीनमाल ( मारवाड) में अपना राज्य मादा । चहीते लाई गानाओंने निकल पर जालार, मिशाना, कोकिराहपूमल, असा, पाना, मोर आदि गाम भरना राय माहम दिया 1 कुछ समय परमारका भयाकी - - - -- - - -- (१)सहीकए दर्शन, विन्द । [ १७ ]________________

मुन्न दाखाका राज्य बोटानोंने छीन लिया और इन राजधाम चन्द्रायतको बरबाद कर दिया। जालोर और सिवानेसरी शासाका राज्य भी चौहानाने ले लिया। कोपिरामें घरपीदागह बना राजा हुआ । जिनकी औलाद्के स्टॉर वाराहर पोरक नामसे प्रसिद्ध हुए। इसके पीछे गल, दया और मण्डोर पर भाटियोने अपना अधिकार कर लिया और विराइको भी उजाड़ दिया । परन्तु घरीवाराहके पोत वाइडरावने भाटियोंकी मारवाड़से निकाल कर विराइस ७ कोस दक्सनरी तरफ बीटमेर बादर पसाया । इसका बेटा चाहवराय और बहरायका सेवक हुआ । इसमे सॉखला शाम निकला और इसके भाई सोटाके वाज सोडा पवार कहलाने लगे। ___ गौसला शास्त्राने मानवादी उसर थलीमेर सोसिपारून, जाँगल धगरह पर अपना राज्य कायम दिया, जिसको अन्त स्टाने ले लिया । शाज पल ये गोष जोधपुर और चारानेरके राज्योंमें हें 1 हाँसला माई सोटाने सूमरा भादियोस पालका राज लेनन, ऊमरकोटमे अपनी राजधानी काबम की सार यहीं पर पैदा हुआ था । उसनहा राना परसा महाँका राजा मा । यादमे यह राज्य सिंधक मुसलमानोंके अधिशरमें चला गया और उनसे स्टोहाने छीन दिया, जो अब अँगरेजीगरकार के अधिकार है और उसकी खमें भारत सरकार जोधपुर दरबाग्यो १७... रुपये सालाना रोयल्टी में देता है। माहरायका देश अनातराव सप्टला भा। इसने पिरलार (गुजरात) राजा केवारको परुड़ कर पिंजरेनें कैद वर दिया था। भौसारे भिगाने आनेम पहले ही इस नगरको इप्पल देव पारने बसाया था । यह उप्पलदेव मोसे राजापा गाला था और भानमारमें और गवाही जानके कारण भंडारमे आगया था । यहाँ पर दूसरे बनाइने मटोसो चास रोग उत्तरका एक बड़ा यल जो उजाड़ पड़ा था इसे रहनको दे दिया । यहाँ पर उप्पल देवने ओसियोरा नाम एर पार पसाया । यह शहर अब ओसियाँ नामम प्ररित है। यहीं (औसियाले) के पनीर |भू रहदात में 1 शायद भानमार मारवाड़ी भाषा बोसिमाला परिणागती पहना [ १८ ]________________

पर भी धंधुरकी मालाइतें होने के कारण हो भौध कहलाते होंगे । धांधू पर्वरोंगे. राग्य पर भाटियोंने कजा कर लिया और उनमे टम मौसलोंने छीन लिया। ओसियों के सिरियाय माताके विशाल मन्दिर माना जाता है कि 'मतदेय पारका राज्य बहुत बड़ा था, पयों कि यह मन्दिर दासी सयसी सामना है और एक दिन के समान अब तक साचित राहा है। मनमालगे पारित और भी शासाएं किसी ची। उनमेंगे कारटमा नानकी शासाका राज्यमाचोरमें था और काया शामका राज्य भीनमालके पारा राममन नगाह फई टिकानोंमें या। कुछ समय बाद कालमा पौरोंसे तो चौदानाने राज्य रहीन लिया और काया पापायाले अब वक राममन वगैरद ( जसवन्तपुर) गबॉम मौजूद है। कम प्रफार परमारों के मारवाड़मेर इनाने यड़े राम्म अन्न फेवल फाया पोरके माम घोहीभी जमीदारी रह गई है। मालपमें भी परमारोंका विशाल राज्य था । जिसके बाबत स्यातोंमें यह सोरटा लिया निसता है: “पिरथी बड़ा पार पिरथी परमारती । एक उजीणी धार दूजी आपूयेसणो॥" यह राज्य मुमलयाग पादशादौकी वाइयों बावाद हो गया। मगर यहाँसे मिक्ली हुई कुछ शाखाएँ अव तक नीचे लिखी जगहोंमें गौर हैं:मालवा-धार और देवाम् । मुटेललाट-अायगढ़ 1 मराभारत--राजगढ़ और मरहिमन से समपारलाक पवार है। बिहार-भोजपुरिया, बसरिया बगह परमाके राम अमराव पादिम है। मंयुक्तमान्त-विहरी गनुशल (स्वतन्त्र राज्य)। कागहके पौराका राज्य गुहिलोरोनि से लिया भा । यहीं पर भर गिरपुर और समादेशी रियामते है। [ १९ ]________________

पालश। परमारोंके बाद पालवंशियोका इतिहास है। इन्होंने अपने दानपमि सारे हिन्दुस्तानको पतद परने या इसपर हुक्मत परनरा दाया किया है। पर असल में ये कंगाल और बिहार राजा थे। शायद कभी पुछ भागे मी बट गये हो । इनमें पहले राजा गोपालके वर्णनमें आईन-अपचरी और परिश्ताका भी नाम आया है, कि ये गोपालको भपाल चताते हैं । फरिस्ताने भूपालका ५५ वर्ष राज्य वरना लिसा है। यही यात उससे पहलेगी बनी बाईने-अपवरीमें भी दर्श है। पर गोपाल (भुपाल ) धर्मपाल और देषपाठ के पीछेचे नाम आईने-अक्वरीसे नहीं मिलते हैं। उसमें भुषालो जगपाल राक १० राजाओंका १९८ बरस राज्य करना और जगपालवे, पीछे मुखसेनका राजा होना लिया है। आईने अमरीमें १० राजाओं नाम इस प्रकार है-- १ भूपाल ६ शिवपाल अमेपाल " जैपाल ३ देवपाल ८ राजपाल ४ मापनपाल ९ भोपाल ५ पनपतपाल १. जगपाल सेनवंश। पाख्वाके बाद सेनाका इतिहाम लिखा गया है । शेख अबुल फटने भी आईन अरवरी में पारव राजाओके पीछ सेनवंगी राजाओकी बंशावली दी है। परन्तु उनको कायस्थ लिखा है। उसने पारवाशियों और उनके पहले दो दूसरे राजघरानों को भी, जो महाभारतमें काम मानेवाले राजा भगदतनी सन्तानके पीछे चगालम सिंहासन पर बैटते रहे ये अपनी नम समयकी तहकीकारासे कायस्प.ही हिता है। अब जो दामपनो था शिलालसोमें पालोपो सूरजशी और सेनाको चन्दवशी लिगा मिलता है शायद वह ठीक हो। परन्तु सेयरों में जिरा तरह और मही तर दिएर पानेको किसी लेखन मूवंशी, किमीमें चन्द्रवंशी और [ २० ]________________

किंगाम अमिती निया निता है। इस मिगल इन इतिहास में शवह नाह मिठ मनी है। बैंगलम वैद्य हा स्वामी मही है वायरथ भी है, जिना यन्म न्यदोष निले पाकरगामें मुराललानौरे पहरेग चला आता था । पर अरिजी अमलदारीमें करता नियादा हानेर परवाद हा गया है। भाइने अम्पसमें नीचे लिये सेन्वा राजामेया ..६ परम ता राम कग्दा सिसा है-- १ मुमगैन शासन (पीमा रिला इर्मका यन्तायाम) समानसन मापवसेन ५ बसन ६ मदान • राजा नोपा ( दनो मापद) पर तमा नोना मर गया तब राय लवमन्सनका बेग उसमगा राना हुआ। उनका रानवाना नदियामें थी। ज्योतिपियों ने उसका राव और पन परटे हानेकी सनर नी थी और सामुदित सासरे अनुसार इन कामावा बाबाला बम्नियर धिनी चलाया था 1 यह बस्तियार मुलान गाउन मेराका गुलाम था और निर्फ १८ समारोसे विहार उसे बड़े सूबरो फतह पर नपा था। राजा नेता ज्यातिपयों में रहने पर ध्यान नही दिया पर लोग बहनो मारे मदियास निकल भाग और अपने साथ ही दगारों को भी कामरप और मानांषमाझी तरफ ले गय 1 पद मुन जब खिलक्षिा वगालम जया तब राणाका भा राना पता जिलजीन मरियमो चाकर रखनाती बसाई जिरानी व रोपा रख मनन काल गया था। मुलतान कुलगुसन ऐश्मने भी जो सत्र १. स शहाबुमन गोरमा कायमराय था, लखनाताको बतियारसी बार्शरम हिरा दिया। अनुपईनी मददगे रखतियारले समन् १00 में बिहार भार राबत् १0 में (१) पायरयकुलादपत्र (बगला), [ २१ ]________________

पगार फतह किया था । परन्तु इस पर भी मन्तीय नादि कारण उसने कामरूप, भासाम और नियत पर भी चडाद पर दी, जहाँस हारपर रौटते हुए हिजरी सन् ६.० (वि. स. १०.१)में देवकोटमें यह अपने ही एक अमीर अ मर दान हाधये मारा गया। इन सनदार इतिहास, वारा वादविवादका विषय लवमनसन स्वन है। पहरे तो मह पात् वेताल और बिहारमें चरता था पर अब सिर्फ मिभिगमें ही भलमा है । अस्वरनामेसे जाना जाता है कि गला अपवरने अप अपना सन् ' इलाही मन्' के नामसे चराया था शव सो चारते एक बहुत बड़ा परमान् निशा था । उसमें दिया है कि हिंदुस्तानमें रद तरह सवत् दलहै । उनमे एक ससम्मान सबत् यगासमें चरता है और यहाके राजा शवमनसेनदा चलाया हुआ है जिसा अपतन हितरी सन् ९९१ विकासपत् १६४१ और शालिवाहन शव गवत् १५.४ में ४६५ वश झाले है। इससे जाना जाता है कि लखमनसेन रावत् विक्रमसयत् ११४६ और पाक राबत् १०४१ में वा था । परन्तु वकीपुरकी द्विजपनिकामें इगो विस्त शक संवत् १.२८ में लसमनसनका बचार राजसिहासन पर बैठकर अपना सवत् चरणमा लिया है। इन दोगान १३ अरपका फो पटता है क्योकिल स. ११८ मि . ११.३ में या । अवसरनामेये लेखमें इस समय बि. स. १९७७ में लक्षमनगेन सवा ८०१ और द्विजपत्रिका के हिलावरी ८१४ होता है । न मालम निथलाई पचानोंमें इसवी सहा मंग्या आनर क्या । आरा नागराप्रचारिणीपनिकाके चंथ घरातीसरी मात्रामें विद्यापति उत्स्फ शारान गाँच विस्पाका दानपत्र या है। उसके गचभागने भन्में तो रमणलेन सवत् २९३ सादन मुदी ७ गु शुग है। पर मद्यविभाग को नाचे सीन सदन इस तौरसे मुद्दे है - मन, ८.४ नगर १४५५ शके १३९ ये तनों मवन् जर चाया लभ्मगसेन राजन् मै भारों ही सगत् मल है, मोवि य गणितम भापमन मेर नहीं साते । यदि मयन् १४५५ और माचे. [ २२ ]1३६६ मते २५३ निकालें कश ११६' और १०३६ वी रहत है। परन्तु एक तो वि० स० और श स का आपका अन्तर १३५ हैं और ऊपर लिये दोनों सवतका अन्तर १२६ ही आता है। दूसरा पहल रिस्ते अनुसार अगर यसेन का प्रारम्भ वि० सम् ११३६ और श) १० १०४१ में मानें तो इन न ( वि० सं० ११६५ र दाम • १०३६ ) में नश १४ र ५ को फर्म रहता है । इसलिये विद्यापति क्षेत्र सवर् इफ नहीं हैं। छाते । दमणगेन सब ३९३ में भरनार्गक अनुसार चिंक्रमणबत् १४६९ और श० स० १३३४ और दिनपनिका लेखसे वि० स० १४५६ र श० स० १३५१ ग्ते हैं। | उपर अने मन् £59 के पहले सत्र नाम नहीं दिया है। अगर इगो हिनी सतु मानें त्रय भी वि. स. १६५५ में हि० से ४६ था ३०५ नी । इम ज्ञ|हिर होता है कि आरा नागप्रचणभाफी कामे इन पर पर और गद्दी किया गया है। | मग या शाकद्वीपीय ब्राह्मण । सेनाकै इतिहरने मग या इकट्ठपाच वृद्मदा भी बन गया है । नपूरःनेके सेपर और भौजक जाति लोग अपने मामा हुने हैं। परन्तु नमान्की सेवा करने के सवाल धनकी वृतिक कारण उनके घर के जाने दूसरे मामी को अपने वशवर न ममते । जव मत् १८११ ची मममारी पार्क मारवाईं। जाईयो रिपोर्ट लि गर्दै भी तब संत्राने हिना था कि-" भराड मझये तो भूत हैं और रायमूर इतरे हुए मग झह्मण शाकहीं पके रहवाले हैं। यहाँके झाड़ा मन्दिरोगी पूझा नहीं करते थे। इमरिये अपनै बन्नलाये मुझे मन्दिर पूजा परने वाले कुन पुत्र साम्य शङ्खप्त न मग नृमोको रूया था और उनका विरःहू मोज शान्टिकी कन्यासँग उनषा यहाँकै माझमें मिल दिया था । इराक्ष मारा नाम छ र मौजा पम् मा । नैदा हो स म श य मायन है, और मुरम 2 जरुरत हमारी उगी हुई है नशा दिग्गन [मारी जपा है । इमक प्रम"में हलविन भविष्यपुग३ ये हैं[ २३ ]________________

(३) जरशस्त इतिरयातो बचायोरयातिमामतः। पुनशभूयः संप्राप्य यथार्य लोकपूजितः ॥ मोजकन्या सुजातत्यादोजकास्तेन ते स्मृताः ॥ आदित्यशर्मा या लोके वचार यातिमागताः ॥ इसी विषयमें याद में छपे भविष्यपुराधमें इस प्रार रिया है अरशद इतिख्यातो चशकीतिविवर्धन ।।४॥ अझिजात्यामधाप्पोक्ता सोमजात्या द्विजातयः । भोजकादित्य जात्याहि दिव्यास्ते परिकीर्तिताः ॥ ४॥ -अध्याय ११९। आगे चलकर उसीके अन्याय १४० में लिया है-- भोजकन्या सुजावत्याद्धोजकास्तेन ते स्मृताः ॥३२॥ जरका अर्थ वडा नमिवाला हाता है। बहुतने ऐतिहासिक जरहास्त, मग और शायापी पाब्दोंसे इनका पारसी मना मागत हैं, क्यों कि वरशस्त ( जरदस्त) पारसियो पैगम्बरका नाम था । इमान ईशनमें आगकी पूजा चलाई थी तिमी पारसी लोन अस्तक पर आते हैं। शरत्रमादीने आग पुननेवालेका नाम भग लिया है। अगर सद साल मग आतिश फरोजद । षी आतिश अदरी उफ़तद विसोजद । इन बारेमें अधिनः देखना हो तो मारवाड़ी जातियोकी रिपोर्टमे दख सात है। चौहान-चश। सेननशके बाद चौहानवश है। (चौहान) भी मास्नेको पाँगका तरह अमिवशी समझते हैं। शिलालशोमें इनका सूर्यम दाना मी लिखा मिलता है। राजपूतानने पहल पहल इनका राज्य सामरमें हुआ था। इसी ये लोग गॉमरा चौहान करलाने ।। इसक पूर्व ये खास रिवा चौहान बहलात इसम पाया [ २४ ]________________

जाता है कि नरा मून पुरुर बामुदेव गया पहानी नये आया था। "हार पनाया है। साला पहाट्या पटू धर्म पनाया जाता है कि उन भिर गसमें छोटे पडे रागालार पदासा कि वापरने अपनी हायरी किया है। चाहाने दिया धीर दानानि इना पावसाय सपादला कर दिया है और एकारी बीदानेगी सपादराय लिया है। आज इस लोग सौंभर, लममर और नागोरो उपादरक्ष का समतल , नगर कारमें भागोरके धामे और वारस बहाते है जहाँ पर स्वाररास आये हुए नार वरत है। साम्भर, दिशा, मनमर, और रणथमोरफे चौहान सभरी महलाते थे । इनाको दाखाम भानपल पापी टिकाना नमराणा इराके मारने १ और मैनपुरी, गवा वानरी तरफना मेपाने गये हुए चौहानोरे का बड़े बडे ठिकाने चेदय नगरह मेगा है। ये पुरनिय चौहान परति है। गजनसी चौहान सगरसे माडोसन आ रहा था। इसके पशन नादोश चाहान पहलाय । लालनमीकी पन्दाका पादाने वैग्या और बात हुए। ये बासस बे थे। इनमें से केव्हा तो नादालमे रहे। और दाने गारोका जारारका चिरा डीन रिया । यह पिता रिस पहाई पर है उसे सोनगिर रही है, इसीग सदक साप सोनगरा पहीन कहलाये। मुलतान बाहामुनिने जन पृ पारनमै दिनी भर जाउमैर फलद किया तब पाका साउदेसी उपका सहयार हो गया । दीसे सालोसा रान पई पीरिया सर्व एना रहा और खादिर भुल्तान अलाउदामन बरतने रावकान्हदेवरा गया । मार सिा सोनगर शाखास दो शाखाएँ और निकी एक देपा और मरा मकरा । देवता माहानने तो आबू और चारतातो पत्तर पणे परमासकी मराठी मायाप राज सग कर दिया । इन्ही (देव)के बाज आनकर मारहाके राज (राना) रारा शासावे चौहानोंन जालना शाखाये परोस मावार कर लिया था । इमास में सोचारा पगा। सीबोर मगर रोधपुर में है और दगा पासपासक बनुतने गौपनि साँचौरा सोनारी गाँदारा है। नया पाषा बीतवानका बाप है। [ २५ ]________________

मार्शल चाहानोकी दूसरी बड़ा शारसा हाडा नागस हुई। इस ( हाडा) पासाने चहान हाड़ोती-चोटा और बूंदीमें राज करते है। नादाल चौहानोंकी तीसरी शासाना नाम रीची है । इस (सीची) शाखाका बड़ा राज्य गगावरून.था, जो अब गोटेवालोंके करों में है । साचियोस थर राज्य गालंबेके पादशाहनि ले लिया था और उनसे दिहारे बादशाहो फोमे थाया और चोने कोट्यालाको दे दिया । परन्तु गागानो आसपास रीचिया पई छोटे डिसाने राघोगढ, मबसूदन, वगैरह अय मी मौजूद हैं। गुजरात पर चढ़ाई करते गमन तुबॉमे चौहानोमे नाहोरमा राज्य ले लिया था। मगर उनके कमजोर हो जाने पर शालार के सोनगरा चौहानेनि नाफेल पर फरजा परंक महोर तक अपना राज्य वटा लिया । उस समयके रनवे शिलालेख मधोरसे मिले ह । अब भी गा ले चौहान थावधिराद इलाकै पालम्पुर एजेन्सीम छोटे छोटे रंस है। रणयभारके यौहान राजाभोमें पादणदेव, जैतसा और हम्मार नढे नामी राजा हाह । क्वालजीके शिलालेसमें खिता है। जवकी तल्बार क्याहोमी कठोर पीठ पर कुठारमा वाम चरती बी और टसन अपनी राजधानीगे बेटे हुए ही राजा जैसिंघरो पाया था। हम्मीरने मुरनान जालाउद्दीन के यागी मार मोहम्मदशाहको मय उसके साथियोंके रणभारमें पनाह दा थी । ये लोग बालोररी भाग पर आये में । मुलतागके मोरम्मदशाहरा मांगने पर हमारने अपने मुसलमान शरणागती रक्षाके बदले अपना प्राण और राज्य दे डाला । ऐसी जबॉमदीकी मिसाल गुसलमानोली किमी गी सत्रारासमे नई मिलती है कि विमी मुमलमान बदिमाइने अपने हिन्द शरणागतकी इस प्रकार रक्षा का हो। हम्मीर कविभाथा । इसने राहार' नामक एक अन्य ससूतमे बनाया था । यह अन्य पारानेरके पुस्तकारसमे मौजूद है। (१) नरपर और ग्वालियले कदाहे थे। २)भह मालपेका राजा होगा। [ २६ ]________________

व्यास ने दस बाके हिन्दानान नौहान, चाय और छान लिखे मिल्ने है। इन्ही राव का बाहनान और चनुाहुनान है। चहुमानकी एक मिगात प्रचाराजरामैके पद्मावती मन्डमेन्सिभ दोहेगे जाहिरनी है-- वरगारी पद्मावती गहगारी सुलतान। प्रिथीराज आए दिटी चतुर्भुजा चौहान । मागेका कहना है कि अनिष्टसे पंदा होते समा चहानले बार हाय थे । इसी आधारपर चदने पृथ्वीराजम नु न चाहान' लिख दिया है । म 'मदायरमन' नामर्स पारसी तवारी में लिखा है कि चाहनोंवा राज्म चारों ठरफ फैल गया मा । इसाले उनको चतुर्भुन कहते थे। हम भारत प्राचीन राजकमरे प्रपम मागका निकारी सो जिजिलावा और दानपनों के आधार मिवाम फारमी तवारीनों और माका चरियों तथा पूनानैनगौरी पान वगैरहमी सहायताग लिया गई है यही मनास करते हैं और साथ ही प्रार्थना करते हैं कि गहलय पाठर भूल्यूपमे लिये शमा प्रदान करें। मई मन् १९.१, दनिसाद, सवारी अध्यक्ष इसिगारा कम्बारण,