महात्मा शेख़सादी/परिचय

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महात्मा शेख़सादी  (1917) 
द्वारा प्रेमचंद
[ परिचय ]
 

परिचय

शेख़ सादी की गणना उन महात्माओं में है जिन के विचारों का प्रभाव केवल ईरान ही में नहीं वरन् समस्त संसार पर पड़ा है। वह कवि थे, लेकिन ऐसे कवि जो किसी उच्च उद्देश्य को पूरा करने के लिए जन्म लेते हैं। उन्होंने केवल काव्य-प्रेमियों के मनोरञ्जन के निमित्त अपनी काव्य-शक्ति का उपयोग नहीं किया। उनका उद्देश्य अपने भाइयों की नीति, विचार तथा व्यवहार का संशोधन करना था और उन्होंने अपनी कविता-शक्ति सर्वस्व इसी उद्देश्य की भेंट कर दी। यदि संसार के किसी कवि के विषय में यह कहा जा सक्ता है कि ईश्वर का सन्देशा वह अपने बन्धुवों को सुनाने के लिए आया था तो वह कवि शेख़ सादी है। एक विद्वान् पुरुष का कथन है कि कवि का काम मानवचरित्र का अङ्कन वा भावों का दर्शाना नहीं है, उसका काम उन सच्चाइयों को प्रकट करना है जिनका उसने अपने जीवन में अनुभव किया है। इस दृष्टि से देखिये तो सादी का स्थान बहुत ऊंचा है! मानव-स्वभाव का जितना अनुभव उनको था, संसार को जितना और जिस तरह उन्होंने देखा, उतना कदाचित् [  ]किसी अन्य कवि ने न देखा हो। उन्होंने जो कुछ लिखा है वह उनका अपना अनुभव है। उस समय पृथ्वी का जो भाग सभ्य समझा जाता था वह सदैव सादी के पैरों तले रहता था। वह बहुधा भ्रमण करते रहते थे और जो अनूठी तथा शिक्षाप्रद बातें देखते थे उन्हें अपने विचार-कोष में संग्रह करते जाते थे। यही कारण है कि शेख़ सादी की गुलिस्ताँ और बोस्ताँ का आज जितना आदर है उतना तुलसीकृत रामायण के सिवा कदाचित् किसी अन्य ग्रन्थ का न होगा। जिसने कुछ थोड़ी सी भी फ़ारसी पढ़ी है वह सादी से अवश्य परिचित है। उनकी दोनों पुस्तकें प्रत्येक पुस्तकालय, प्रत्येक विद्यालय तथा प्रत्येक विद्याप्रेमी के आदर की सामग्री रही हैं। शेख़ सादी केवल पद्य-रचना ही न करते थे, वह गद्य रचना में भी अद्वितीय थे। गुलिस्ताँ का जितना आदर है उतना बोस्ताँ का हर्गिज़ नहीं है। सादी ने स्वयं गुलिस्ताँ पर अपना गर्व प्रकट किया है। बोस्ताँ के टक्कर की पुस्तकें फ़ारसी में वर्तमान हैं। लेकिन गुलिस्ताँ की समानता करनेवाली कोई पुस्तक नहीं है। अनेक बड़े बड़े लेखकों ने इस ढङ्ग की पुस्तकें लिखने का प्रयत्न किया, किन्तु सफल न हुए। इसकी भाषा इतनी मधुर, लेख-शैली इतनी हृदय ग्राही, और वाक्य-रचना ऐसी अनूठी है कि नीति-विषय पर ऐसा ग्रन्थ संसार भर में न होगा। ईसप की नीति-कथायें बहुत प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार पंचतंत्र और हितोपदेश की कथाओं का भी बहुत प्रचार है, पर इन पुस्तकों में [  ]कथायें प्रायः लम्बी और पशु-पक्षी आदि के सम्बन्ध में हैं। सादी के पास निज अनुभूत घटनाओं का इतना बाहुल्य है, और वह ऐसे मौके से उन्हें काम में लाते हैं कि उन्हें कल्पित कथाओं के गढ़ने की आवश्यकता ही नहीं थी। वर्त्तमान समय में अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध ग्रन्थकार डाक्टर स्माइल्स, ब्लैकी, कावेट, मारडन आदि ने चरित्र सुधार और नीति पर अच्छी अच्छी पुस्तक लिखी हैं, किन्तु विचार करके देखने पर इनकी पुस्तकों में बूढ़े शेख़ सादी की लेखशैली साफ़ झलकती है। सादी ने इस पुस्तक का नाम बहुत ही उचित रक्खा। यह ऐसी मनोरम वाटिका है कि आज छः शताब्दियों के बीतजाने पर भी वैसी ही हरी-भरी, नवपुष्पित और सुसज्जित बनी हुई है। संसार में ऐसी कदाचित् ही कोई उन्नत भाषा होगी जिसमें इसका अनुवाद न हुआ हो। अतएव ऐसे महान् लेखक से हिन्दी-प्रेमियों का परिचय कराना आवश्यक है।