युद्ध और अहिंसा
इस समय यूरोप युद्ध-दानव का रंगस्थल बना हुआ है, जिसकी गूंज से संसार के दूसरे देश आतंकित हैं। महात्मा गांधी के अहिंसा-सिद्धान्त को देश-विदेश के महान् मनीषियों ने मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है। परन्तु कई अहिंसाधर्मियों के मन में इस समय बड़ी उलझन और हलचल-सी मची हुई है; विशेषतः इस रूप में कि युद्ध के समय अहिंसा का व्यवहार्य रूप क्या हो? प्रस्तुत संग्रह उसीके सुलझाने के लिए तैयार किया गया है।
इस ग्रंथ में तीन खण्ड है। पहले मे वर्तमान यूरोपीय युद्ध के शुरू होने से लेकर 'हरिजन', 'हरिजन-सेवक' आदि के बन्द होने तक महात्मा गाधी ने जो उद्गार युद्ध-सम्बन्धी समस्याओं और प्रश्नों पर प्रकट किये उनका संग्रह है। दूसरे में वर्तमान् युद्ध से पूर्व की विश्व-राजनीति की उलझनो, संकटों आदि पर लिखे गये उनके लेख हैं। और तीसरे में सन् १९१४-१८ के महायुद्ध के समय उन्होंने अग्रेजों को जो सहयोग दिया उसका स्पष्टीकरण करनेवाले और उनसे पूछे गये तत्सम्बन्धी अनेक प्रश्नों के उत्तर में 'यंग इण्डिया', 'नवजीवन' आदि में छपे हुए लेख संग्रहीत किये गये हैं। गांधीजी का हाल ही 'चर्खा-द्वादशी' पर सेवाग्राम में दिया हुआ अंतिम भाषण भी इसमें मे ले लिया गया है।
आशा है, युद्ध और युद्ध-काल में अहिसा किस हदतक व्यवहार्य है और अहिंसा-धर्मी का क्या कर्तव्य है, इस दृष्टि को स्पष्ट करने में इस पुस्तक का अध्ययन विशेष लाभदायक होगा।
मत्री
सस्ता साहित्य मण्डल
विषय-सूची
: १ :
१. | समझौते का कोई प्रश्न नहीं | ... | ... | ५ |
२. | हेर हिटलर से अपील | ... | ... | ९ |
३. | मेरी सहानुभूति का आधार | ... | ... | ११ |
४. | पहेलियाँ | ... | ... | १६ |
५. | भारत का रुख़ | ... | ... | २३ |
६. | कसौटी पर | ... | ... | २९ |
७. | वही पार लगायेगा | ... | ... | ३५ |
८. | असल बात | ... | ... | ४१ |
९. | अहिंसा फिर किस काम की | ... | ... | ५२ |
१०. | हमारा कर्तव्य | ... | ... | ५७ |
११. | आतंक | ... | ... | ६२ |
१२. | हिटलरशाही से कैसे पेश आवें? | ... | ... | ६५ |
१३. | हरेक अग्रेज़ के प्रति | ... | ... | ७० |
१४. | मुझे पश्चाताप् नहीं है | ... | ... | ७६ |
१५. | इतना खराब तो नहीं | ... | ... | ८३ |
१६. | नाज़ीवाद का नग्न रूप | ... | ... | ८७ |
१७. | 'निर्बल बहुमत' की रक्षा कैसे हो? | ... | ... | ९३ |
१८. | कुछ टीकाओं का उत्तर | ... | ... | ९८ |
: २ :
१. | चेकोस्लोवाकिया और अहिंसा-मार्ग | ... | ... | १०५ |
२. | अगर मैं 'चेक' होता! | ... | ... | ११० |
३. | बड़े-बड़े राष्ट्रों के लिए अहिंसा | ... | ... | ११७ |
४. | यहूदियों का सवाल | ... | ... | १२१ |
५. | जर्मन आलोचकों की | ... | ... | १३० |
६. | आलोचनाओ का जवाब | ... | ... | १३३ |
७. | क्या अहिंसा बेकार गई? | ... | ... | १३७ |
८. | क्या करें? | ... | ... | १४३ |
९. | अद्वितीय शक्ति | ... | ... | १५९ |
१०. | अहिंसा और अतर्राष्ट्रीय मामले | ... | ... | १५७ |
१. | लड़ाई में भाग | ... | ... | १६९ |
२. | धर्म की समस्या | ... | ... | १७४ |
३. | युद्ध के विरोध में युद्ध | ... | ... | १७९ |
४. | युद्ध और अहिंसा | ... | ... | १८३ |
५. | युद्ध के प्रति मेरे भाव | ... | ... | १८८ |
६. | कौन सा मार्ग श्रेष्ठ है? | ... | ... | १९३ |
७. | अहिंसक की विडम्बना | ... | ... | २०१ |
८. | विरोधाभास | ... | ... | २१० |
९. | व्यवसाय मे अहिंसा | ... | ... | २१९ |
वर्तमान यूरोपीय युद्ध
और अहिंसा
१. समझौते का कोई प्रश्न ही नहीं
२. हेर हिटलर से अपील
३. मेरी सहानुभूति का आधार
४. पहेलियाँ
५. भारत का रूख़
६. कसौटी पर
७. वही पार लगायेगा
८. असल बात
९. अहिंसा फिर किस काम की?
१०. हमारा कर्तव्य
११. आतङ्क
१२. हिटलरशाही से कैसे पेश आयें
१३. हरेक अंग्रेज़ के प्रति
१४. मुझे पश्चाताप नहीं
१५. इतना ख़राब तो नहीं
१६. नाजीवाद का नग्न रूप
१७. "निर्बल बहुमत" की कैसे रक्षा हों?
१८. कुछ टीकाओं के उत्तर
यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।
यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।