राबिन्सन-क्रूसो

विकिस्रोत से
राबिनसन-क्रूसो  (1922) 
द्वारा डैनियल डीफो, अनुवादक जनार्दन झा
[ आवरण-पृष्ठ ]

राबिनसन-क्रूसो इंडियन प्रेस लिमिटेड

[ आवरण-पृष्ठ ]

राबिन्सन क्रूसो

 
 

अनुवादक

पं॰ जनार्दन झा

 
 

प्रकाशक

इंडियन प्रेस लिमिटेड, प्रयाग

१९२२

संशोधित संस्करण ]
[मूल्य १॥)
 
[ प्रकाशक ]

PRINTED AT

THE BELVEDERE PRINTING WORKS

ALLAHABAD

 

PUBLISHED BY

APURVA KRISHNA BOSE

AT

THE INDIAN PRESS, LTD

ALLAHABAD

[ निवेदन ]

निवेदन


अँगरेज़ी के शिशु-साहित्य में "राबिन्सन क्रूसो" का बहुत आदर है। इसके लेखक का नाम डैनियल, डी फ़ो है। लोगों का अनुमान है कि अलेकजेंडर सेलकार्क के वृत्तान्त के अवगत करके लेखक ने इसकी रचना की है। अलेकजेंडर सेलकार्क एक अँगरेज़ जहाज़ी था। जहाज़ डूब जाने से एक बियाबान टापू में पहुँच कर उस ने अपने प्राण बचाये थे। वहाँ पर मुद्दत तक अकेले रहने के बाद, उद्धार होने पर, वह अपने देश में पहुंचा था।

"क्रूसो" की आख्यायिका एक ओर जैसी अद्भुत और कैतूहल-पूर्ण घटनाओं से युक्त है उसी तरह दूसरी ओर शिक्षाप्रद है। इसी कारण इंग्लैंड में इस पुस्तक का इतना आदर है। यहाँ ऐसा विरला ही घर होगा जिस में इस पुस्तक के किसी न किसी संस्करण की एक आध प्रति न हो । और ऐसे बच्चे भी खेजने से मिले तो मिले जिन्होंने इस पुस्तक को बड़ी चाव के साथ कई बार पढ़ा न हो।

बच्चों की कल्पना को जागृत करने के लिए ही इस है पुस्तक का हिन्दी में पूरा पूरा अनुवाद किया गया है। अनुवाद में अनावश्यक विस्तार के सिवा और कोई भी अंश छोड़ा नहीं गया। सारी घटनाओं का वर्णन इसमें आ गया है। अनुवाद को सहजबोध्य और रोचक बनाने की चेष्टा की गई है।

जिन के लिए यह पुस्तक लिखी गई है उनका मनोरञ्जन हो तो श्रम सफल समझा जायगा।

सम्पादक

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।