रामनाम/१६
रामनामका प्रचार
मुझे यह प्रतीत होता है कि रामनामकी महिमाके बारेमे मुझे अब कुछ नया सीखना बाकी नही है, क्योकि मुझे अुसका अनुभव-ज्ञान है। और अिसीलिअे मेरा यह अभिप्राय है कि खादी और स्वराज्यके प्रचारकी तरह रामनामका प्रचार नही हो सकता। अिस कठिन कालमे रामनामका अुलटा जप होता है। अर्थात् बहुतसे स्थानोमे केवल आडम्बरके लिअे, कुछ स्थानोमे अपने स्वार्थके लिअे और कुछ जगहोमे व्यभिचार करनेके लिअे अिसका जप होता हुआ मैने देखा है। यदि केवल अुसके अुलटे अक्षरोका ही जप हो, तो अुसके बारेमे मुझे कुछ भी नही कहना है। यह हमने पढा है कि शुद्ध हृदयके लोगोने अुलटा जप जपकर भी मुक्ति प्राप्त की है। और अिसे हम मान भी सकते है। लेकिन शुद्ध अुच्चारण करनेवाले पापी पापकी पुष्टिके लिअे रामनामके मत्रका जप करे, तो अिसे हम क्या कहेगे? अिसीलिअे मै रामनामके प्रचारसे डरता हू। जो लोग यह मानते है कि भजन-मडलीमें बैठकर रामनामकी रट लगानेसे, शोर करनेसे ही भूत, भविष्य और वर्तमानके सब पाप नष्ट हो जायेगे और कुछ भी करना बाकी न रहेगा, अुन्हे तो दूरसे ही नमस्कार करना चाहिये। अुनका अनुकरण नही किया जा सकता।
अिसलिअे जो रामनामका प्रचार करना चाहता है, अुसे स्वय अपने हृदयमे ही अुसका प्रचार करके अुसे शुद्ध कर लेना चाहिये और अुस पर रामका साम्राज्य स्थापित करके अुसका प्रचार करना चाहिये। फिर अुसे ससार भी ग्रहण करेगा और लोग भी रामनामका जप करने लगेगे। लेकिन हर किसी स्थान पर रामनामका जैसा-तैसा भी जप करना पाखडकी वृद्धि करना है और नास्तिकताके प्रवाहका वेग बढाना है।
हिन्दी नवजीवन, १९-११-१९२५