रामनाम/२८

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रामबाण अुपाय

"आप जो भी कुछ लिखते है, मै बड़े चावसे अुसका हरअेक शब्द पढ़ता हू। 'हरिजन' का नया अक मिलने पर जब तक अुसे पूरा न पढ लू, मै रुक नही सकता। नतीजा अिसका यह होता है कि मेरे अन्दर अेक अजीब खुदी पैदा हो जाती है, जो चाहती है कि मै जिसकी पूजा करू, वह मेरी दृष्टिमे पूर्ण हो। कोअी भी अैसी चीज जिस पर विश्वास न जमे, मुझे बेचैन कर देती है। हालमे ही आपने लिखा है कि कुदरती अुपचारमे रामनाम शर्तिया अिलाज है। यह पढ़कर तो मै बिलकुल भ्रममे पड गया हू। आजके नौजवान अपनी सहनशीलताकी वजहसे आपकी बहुतसी बातोका विरोध करना पसन्द नहीं करते। वे सोचते है 'गांधीजीने हमको अितनी सारी चीजे सिखाअी है, हमे अितना अूचा अुठाया है कि जिसकी हम कल्पना भी नही कर सकते थे। अिससे भी बढ़कर अुन्होने हमे स्वराज्यके नजदीक पहुंचा दिया है। अिसलिअे रामनामकी अुनकी अिस झकको हमे बरदाश्त कर लेना चाहिये।'

"दूसरी चीजोके साथ आपने कहा है 'कोअी भी व्याधि हो, अगर मनुष्य हृदयसे रामनाम ले, तो व्याधि नष्ट होनी चाहिये।' (हरिजनसेवक, ३-३-१९४६)

'जिस चीजका मनुष्य पुतला बना है, अुसीसे हम अिलाज ढूढे । पुतला पृथ्वी, पानी, आकाश, तेज और वायुका बना है। अिन पाच तत्त्वोसे जो मिल सके सो ले ।' (हरिजनसेवक, ३-३-१९४६)

'और मेरा दावा है कि शारीरिक रोगोको दूर करनेके लिअे भी रामनाम सबसे बढिया इलाज है।' (हरिजनसेवक, ७-४-१९४६)

"पहले-पहल जब कुदरती अुपचारमे आपने अिस चीजको दाखिल किया, तो मैने समझा कि आप श्रद्धाके आधार पर चलनेवाले मानसिक अुपचार (Psycho-Therapy) अथवा क्रिश्चियन-सायन्सको ही दूसरे शब्दोमे रख रहे है। अुपचारकी हरअेक प्रणालीमे अिनका अपना स्थान होता है। अूपरके [ ४१ ]अपने पहले अुद्धरणकी मैने अिसी मानीमे व्याख्या की। अूपर दिये हुअे दूसरे वाक्यको समझना कठिन है। आखिरकार अिन पच महाभूतोके बिना, जिनका जिक्र करते हुअे आप कहते है कि सिर्फ वही अुपचारके साधन होने चाहिये, दवाअियोका बनना भी तो नामुमकिन है।

"अगर आप श्रद्धा पर जोर देते है, तो मेरा कोअी झगडा नही। रोगीके लिअे जरूरी है कि वह अच्छा होनेके लिअे श्रद्धा भी रखे। लेकिन यह मान लेना मुश्किल है कि सिर्फ श्रद्धासे ही हमारे शारीरिक रोग भी दूर हो जायगे। दो साल पहले मेरी छोटी लडकीको 'अिन्फेण्टाअिल पैरेलिसिस' (Infantile Paralysis) हो गया था। अगर आजके नये तरीकोसे अुसका अिलाज न किया जाता, तो बेचारी हमेशाके लिअे पगु हो जाती। आप यह तो मानेगे कि अेक ढाअी सालके बच्चेको 'अिन्फेण्टाअिल पैरेलिसिस' से मुक्त होनेके लिअे रामनामका जप बताकर हम अुसकी मदद नहीं कर सकते, और न अेक माताको अपने बच्चेके लिअे अकेले अेक रामनामका ही जप करनेको आप राजी कर सकते है।

"२४ मार्चके अकमे आपने चरकका जो प्रमाण दिया है, अुससे मुझे कोअी प्रोत्साहन नहीं मिलता, क्योकि आपने ही मुझे सिखाया है कि कोई चीज कितनी ही पुरानी या प्रामाणिक क्यो न हो, अगर दिलको न जचे तो अुसे नही मानना चाहिये।"

नौजवानोके अेक अध्यापक अिस तरह लिखते है।

रामनाममे फेथ-हीलिग (श्रद्धासे अिलाज करने) और क्रिश्चियन सायन्सके[१] गुण होते हुअे भी वह अुनसे बिलकुल अलग है। रामनाम लेना तो [ ४२ ]अुस सचाअीका अेक नमूना मात्र है, जिसके लिअे वह लिया जाता है। जिस वक्त कोअी आदमी बुद्धिपूर्वक अपने अन्दर अीश्वरका दर्शन करता है, अुसी वक्त वह अपनी शारीरिक, मानसिक और नैतिक सब व्याधियोसे छूट जाता है। यह कहकर कि हमे प्रत्यक्ष जीवनमे कोअी अैसा आदमी नही मिलता, हम अिस बयानकी सचाअीको झूठ नही ठहरा सकते। हा, जिन लोगोको अीश्वर पर विश्वास नही है, अुनके लिअे बेशक मेरी दलील बेकार है।

क्रिश्चियन साअिन्टिस्ट, फेथ-हीलर और साअिको-थेरेपिस्ट अगर चाहे, तो रामनाममे छिपी सचाअीकी थोडी गवाही दे सकते है। मै दलील देकर पाठकोको ज्यादा नही बता सकता। जिसने कभी चीनी खाअी नही, अुसे कैसे समझाये कि चीनी मीठी होती है? अुसे तो चीनी चखनेके लिअे ही कह सकते है। [ ४३ ]अिस पुण्य-नामका हृदयसे जप करनेके लिअे जो जरूरी शर्ते है, अुन्हे मै यहा नही दोहराअूगा।

चरकका प्रमाण अुन्ही लोगोके लिअे फायदेमन्द है, जो रामनाममे श्रद्धा और विश्वास रखते है। दूसरे लोगोको हक है कि वे अुस पर विचार न करे।

बच्चे गैर-जिम्मेदार होते है। बेशक रामनाम अुनके लिअे नही है। वे तो मा-बापकी दया पर जीनेवाले बेबस जीव है। अिससे हमे पता चलता है कि मा-बापकी बच्चोके और समाजके प्रति कितनी भारी जिम्मेदारी है। मै अुन मा-बापोको जानता हू, जिन्होने अपने बच्चोके रोगोके बारेमे लापरवाही की है, और यहा तक समझ लिया है कि हमारे रामनाम लेनेसे ही वे अच्छे हो जायगे।

आखिरमे, सब दवाअिया पच महाभूतोसे बनी है, यह दलील देना विचारोकी अराजकता जाहिर करता है। मैने सिर्फ अिसलिअे अुसकी तरफ, अिशारा किया है कि वह दूर हो जाय।

हरिजनसेवक, २८-४-१९४६

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आयुर्वेद और कुदरती अुपचार

अीश्वरकी स्तुति और सदाचारका प्रचार हर तरहकी बीमारीको रोकनेका अच्छे-से-अच्छा और सस्ते-से-सस्ता अिलाज है। मुझे अिसमे जरा भी शक नही। अफसोस अिस बातका है कि वैद्य, हकीम और डॉक्टर अिस सस्ते अिलाजका अुपयोग ही नही करते। बल्कि हुआ यह है कि अुनकी किताबोमे अिस अिलाजकी कोई जगह ही नही रही, और कही है तो अुसने जन्तर-मन्तरकी शकल अख्तियार करके लोगोको वहमके कुअेमे ढकेला है। अीश्वरकी स्तुति या रामनामको वहमसे कोअी निस्बत नही। यह कुदरतका सुनहला कानून है। जो अिस पर अमल करता है, वह बीमारीसे बचा रहता है। जो अमल नही करता, वह बीमारियोसे घिरा रहता है। तन्दुरुस्त रहनेका जो कानून है, वही बीमार होनेके बाद बीमारीसे छुटकारा पानेका भी कानून है। सवाल यह होता है कि जो रामनाम जपता है और नेकचलनीसे रहता है,

  1. अपनी आखिरी रोजकी बातचीतमे लॉर्ड लोथियनने क्रिश्चियन सायन्स अर्थात् अीसाअी-विज्ञानका जिक्र किया और अुस पर गाधीजीकी राय मागी। गाधीजीने कहा—"मनुष्यका अीश्वरसे अटूट सम्बन्ध है। अिसलिअे मनुष्य जितने ही अशोमे अपने अिस सम्बन्धको पहचानेगा, अुतने ही अशोमे वह पाप और रोगसे मुक्त हो जायगा। श्रद्धासे मनुष्य जो अच्छा हो जाता, अुसका रहस्य यही है। क्योकि अीश्वर सत्य, स्वास्थ्य और प्रेम है।"
    गाधीजीने आगे कहा—"और वह तो वैद्य भी है। मेरा अीसाअी-विज्ञानके साथ कोअी झगडा नही है। मैने तो बरसो पहले जोहानिसबर्गमे कहा था कि मै अुस सिद्धान्तको पूरी तरह मान सकता हू। पर बहुतसे अीसाअी-वैज्ञानिकोमे मेरी कोअी श्रद्धा नही है। बौद्धिक विश्वास होना अेक बात है, पर किसी चीजको हृदयसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण कर लेना दूसरी बात है। मै अिस विधानको मजूर करता हू कि रोगमात्र पापका परिणाम है। आदमीको अगर खासी भी आती है, तो वह पापका ही फल है। मेरी अपनी अिस खूनके दबाववाली बीमारीका कारण भी अत्यधिक काम और चिन्ताका बोझ ही तो है। पर सवाल यह है कि मैने क्यो अितना काम और चिन्ता की? अत्यधिक काम और जल्दबाजी भी तो पाप ही है। मै यह भी खूब जानता हू कि डॉक्टरोसे बचना भी मेरे लिअे पूरी तरह सम्भव था। पर अीसाअी-विज्ञानने शारीरिक स्वास्थ्य और रोगवाले प्रश्नको जो अितना अधिक महत्त्व दे रखा है, वह मेरी समझमे नही आता।"
    लॉर्ड लोथियनने कहा—"आदमी अगर अितना मान ले कि रोगमात्र पापका ही फल है तो काफी है। गीतामे भी तो कहा है न कि पचेन्द्रियोके विषयोका मनुष्यको त्याग कर देना चाहिये, क्योकि वे माया है। अीश्वर जीवन, प्रेम और स्वास्थ्य है।"
    गाधीजी—"मैने अिसे कुछ दूसरे शब्दोमे रखा है। अीश्वर सत्य है। क्योकि हमारे धर्मग्रथोमे लिखा है कि सिवा सत्यके कुछ है ही नही। अिसीका अर्थ हुआ अीश्वर जीवन है। और अिसलिअे मै कहता हू कि सत्य और प्रेम अेक ही सिक्केकी दो बाजुअे है। और प्रेम वह जरिया है, जिसके द्वारा हम सत्यको प्राप्त कर सकते है, जो कि हमारा ध्येय है।"
    हरिजनसेवक, २९-१-१९३८