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रामनाम/४२

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रामनाम
मोहनदास करमचंद गाँधी

अहमदाबाद - १४: नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, पृष्ठ ६२ से – ६३ तक

 

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सच्ची रोशनी

मुझे अफसोस है कि आज हिन्दुस्तान में रामराज्य नहीं है। अिसलिअे हम दिवाली कैसे मना सकते है? वही आदमी इस विजयकी खुशी मना सकता है, जिसके दिल में राम है। क्योंकि भगवान ही हमारी आत्मा को रोशनी दे सकता है, और अैसी ही रोशनी सच्ची रोशनी है। आज जो भजन गाया गया, अुसमें कवि की भगवान को देखने की अिच्छा पर जोर दिया गया है। लोगों की भीड दिखावटी रोशनी देखने जाती है, लेकिन आज हमे जिस रोशनी की जरूरत है वह तो प्रेम की रोशनी है। हमारे दिलों में प्रेमकी रोशनी पैदा होनी चाहिए। तभी सब लोग बधाअिया पाने लायक बन सकते है। आज हजारों-लाखो लोग भयानक दुख भोग रहे है। क्या आप लोगों में से हर एक अपने दिल पर हाथ रखकर यह कह सकता है कि हर दुखी आदमी या औरत––फिर वह हिन्दू, सिक्ख या मुसलमान कोअी भी हो––मेरा सगा भाअी या बहन है ? यही आप की कसौटी है। राम और रावण भलाअी और बुराअी की ताकतों के बीच हमेशा चलनेवाली लडाई के प्रतीक है। सच्ची रोशनी भीतर से पैदा होती है।

हरिजनसेवक, २३-११-१९४७


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अवसानसे एक दिन पहले

[२ फरवरी, १९४८ को श्री किशोरलालमाअीको गांधीजी के हाथका लिखा हुआ एक पोस्ट कार्ड मिला, जिसकी नकल नीचे दी जाती है।

नोट––श्री शकरन हिन्दुस्तानी तालीमी सघ, सेवाग्राममे शिक्षक है।

यहा 'किया' क्रिया का सम्बन्ध गांधीजी की 'करो या मरो' की प्रतिज्ञासे है, जो अुन्होंने दिल्ली पहुंचने पर ली थी।

'दोनों को आशीर्वाद' का मतलब है––श्री किशोरलालमाअीको और उनकी पत्नी श्री गोमतीबहनको।

––सम्पादक]

"नअी दिल्ली, २९-१-४८

"चि॰ किशोरलाल,

"आज प्रार्थनाके बाद मैं अपना सारा समय पत्र लिखनेमे बिता रहा हू। शकरनजीकी लडकीके मरनेके समाचार यहा भेजकर तुमने ठीक किया। मैने अुनको पत्र लिख दिया है। मेरे वहा (सेवाग्राम) आनेकी बातको अभी अनिश्चित् समझना चाहिए। वहा ता॰ ३ से ता॰ १२ तक रहनेकी बात मैं चला रहा हू। अगर यह कहा जाय कि दिल्लीमें मैंने 'किया' है, तो प्रतिज्ञा-पालनके लिअे मेरा यहा रहना अब जरूरी नही है। अिसका आधार यहाके मेरे साथियो पर है। शायद कल निश्चय किया जा सकेगा। मेरे आनेका मकसद अेक तो अिस पर विचार करना है कि रचनात्मक काम करनेवाली सारी सस्थाये अेक हो सकती है या नहीं, और दूसरे, जमनालालकी पुण्यतिथि मनाना है। मुझमे ठीक शक्ति आ रही है। अिस बार किडनी और लिवर दोनो बिगडे है। मेरी दृष्टिसे यह रामनाममे मेरे विश्वासके कच्चेपनकी वजह से है।

दोनोको आशीर्वाद"

हरिजनसेवक, ८-२-१९४८

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"राम! राम!"

जब गाधीजी प्रार्थना-सभा के बीचसे रस्सियोसे घिरे रास्तेमे चलने लगे, तो अुन्होंने प्रार्थनामे शामिल होनेवाले लोगोके नमस्कारोका जवाब देनेके लिअे लडकियोके कन्धोसे अपने हाथ अुठा लिए। अेकाअेक भीडमे से कोअी दाहिनी ओर से भीड को चीरता हुआ अुस रास्ते पर आया। छोटी मनुने यह सोचा कि वह आदमी बापूके पाव छूनेको आगे बढ रहा है। अिसलिअे अुसने अुसे अैसा करनेके लिअे झिडका, क्योकि प्रार्थनाके लिअे पहले ही देर हो चुकी थी। अुसने रास्तेमे आनेवाले आदमीका हाथ पकडकर अुसे रोकनेकी कोशिश की। लेकिन अुसने जोरसे मनुको धक्का दिया, जिससे अुसके हाथकी आश्रम-भजनावली, माला और बापू का पीकदान नीचे गिर गए। ज्यो ही वह बिखरी हुअी चीजो को उठाने के लिअे झुकी, वह आदमी बापूके सामने