रामनाम/९
नाम रटनेसे शान्ति
"अेक ही चीजका जो यह बार-बार पाठ होता है, वह मेरे कानको कुछ रुचता नही। सम्भव है कि यह मेरे बुद्धिवादी गणिती स्वभावका दोष हो। पर वही श्लोक नित्य बार-बार गाये जाये, यह मुझे अच्छा नही लगता। अुदाहरणके लिअे 'बाक' के अलौकिक सगीतमे भी जब वही अेक पद ('हे पिता, अुन्हे क्षमा कर दे। वे नही जानते कि वे क्या करते है।') बार-बार गाया जाता है, तब मेरे मन पर अुसका कोअी प्रभाव नहीं पड़ता।"
गाधीजीने मुसकराते हुअे कहा "पर आपके गणितमे क्या पुनरावर्ती दशमलव नही होता?"
"किन्तु प्रत्येक दशमलवसे अेक नवीन ही वस्तु निकलती है।"
गाधीजी "अिसी प्रकार प्रत्येक जपमे नूतन अर्थ रहता है। प्रत्येक जप मनुष्यको भगवानके अधिक समीप ले जाता है, यह बिलकुल सच्ची बात है। मैं आपसे कहता हू कि आप किसी सिद्धान्तवादीसे नहीं, बल्कि अैसे आदमीसे बाते कर रहे है, जिसने अिस वस्तुका अनुभव जीवनके प्रत्येक क्षणमे किया है—यहा तक कि अिस अविराम क्रियाका बन्द हो जाना जितना सरल है, अुससे अधिक सरल प्राणवायुका निकल जाना है। यह हमारी आत्माकी भूख है।"
"मै अिसे अच्छी तरह समझ सकता हू, पर साधारण मनुष्यके लिअे तो यह अेक खाली अर्थशून्य विधि है।"
"मैं मानता हू, पर अच्छी चीजका भी दुरुपयोग हो सकता है। अिसमे चाहे जितने दम्भके लिअे गुजाअिश है सही, पर वह दम्भ भी तो सदाचारकी ही स्तुति है न। और मै यह जानता हू कि अगर दस हजार दम्भी मनुष्य मिलते है, तो अैसे करोडो भोले श्रद्धालु भी होगे, जिन्हे अीश्वरके अिस नामरटनसे शाति मिलती होगी। मकान बनाते समय पाड या मचान बाधनेकी जरूरत पड़ती है न—ठीक वैसी ही यह चीज है।"
पिअरे सेरेसोल "मगर मैं आपकी दी हुअी अिस अुपमाको जरा और आगे ले जाअू, तो आप यह मान लेगे न कि जब मकान तैयार हो जाय, तब अुस पाडको गिरा देना चाहिये?"
"हा, जब शरीर-पात हो जायगा, तब वह भी दूर हो जायगा।" "यह क्यो?"
विलकिनसन अिस सवादको ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। अुन्होने कहा "यह अिसलिअे कि हम निरन्तर निर्माण ही करते रहते है।"
गाधीजी "अिसलिये कि हम निरन्तर पूर्णताके लिअे प्रयत्न करते रहते है। केवल अेक अीश्वर ही पूर्ण है, मनुष्य कभी पूर्ण नही होता।"
हरिजनसेवक, २५-५-१९३५
मुंहसे रामनाम जपना
सवाल—दूसरेसे बातचीत करते समय, मस्तिष्क द्वारा कठिन कार्य करते समय या अचानक पैदा होनेवाली घबराहट वगैराके समय भी क्या हृदयमे रामनामका जप हो सकता है? अगर अैसी दशामे भी लोग करते है, तो कैसे करते है?
जवाब—अनुभव कहता है कि मनुष्य किसी भी हालतमे हो, चाहे सोता भी क्यो न हो, लेकिन अगर अुसे आदत हो गअी है और रामनाम हृदयस्थ हो गया है, तो जब तक हृदय चलता है, तब तक रामनाम हृदयमे चलता ही रहना चाहिये। वर्ना यह कहा जायगा कि मनुष्य जो रामनाम लेता है, वह अुसके कठसे ही निकलता है या अुसने सिर्फ हृदयके स्तरको ही छुआ है, लेकिन हृदय पर अुसका साम्राज्य स्थापित नही हुआ है। यदि रामनामने हृदयका स्वामित्व पा लिया हो तो जप कैसे करते है, यह सवाल पूछा ही नही जा सकता। क्योकि जब वह हृदयमे स्थान ले लेता है, तब अुच्चारणकी आवश्यकता ही नही रह जाती। लेकिन यह कहना ठीक होगा कि अिस तरह जिनके हृदयमे रामनाम बस गया है, अैसे लोग बहुत कम होगे। जो शक्ति रामनाममे मानी गअी है, अुसके बारेमे मुझे कोअी शक नही है। हरअेक आदमी अिच्छा मात्रसे ही रामनामको अपने हृदयमे अकित नही कर सकता। अुसके लिअे अथक परिश्रम और धीरजकी जरूरत है। पारसमणिको पानेके लिअे धीरज और परिश्रम क्यो न हो? रामनाम तो अुससे भी ज्यादा कीमती, बल्कि अमूल्य है।
हरिजनसेवक, १७-२-१९४६