विकिस्रोत:आज का पाठ/१९ मई
प्रेमयोगिनी भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा रचित भारतेंदु-नाटकावली की भूमिका का एक अंश है जिसमें "प्रेमयोगिनी" नाटक का विश्लेषण किया गया है। इसका प्रकाशन १९३५ में रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर "इलाहाबाद" द्वारा किया गया था।
"यह एक अपूर्ण नाटिका है और भारतेन्दुजी की अच्छी मौलिक रचनाओं में इसकी गणना की जाती है। पहिले इसके दो दृश्य लिखे गए थे, जिन में प्रथम में 'काशी के बदमाशों और बुरे चाल चलन के लोगों का वर्णन और दूसरे में काशी की प्रशंसा, यहाँ के मिलने के योग्य महात्माओं के नाम, देखने योग्य स्थानों का वर्णन इत्यादि' है।..."(पूरा पढ़ें)