विकिस्रोत:आज का पाठ/२८ अगस्त
३-प्रतिहिंसा विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक' द्वारा रचित कहानी है जो १९५९ ई में आगरा के विनोद पुस्तक मन्दिर द्वारा प्रकाशित रक्षा बंधन कहानी संग्रह में संग्रहित है।
"लुई जर्मन कमाण्डर के निवासस्थान से निकल कर सीधा अपने घर पहुँचा। उसके पीछे-पीछे एक जर्मन गुप्त रूप से लगा हुआ था। जब लुई अपने मकान के अन्दर चला गया तो गुप्तचर वापस लौट गया। लुई का पिता तथा उसकी माता बैठे बात कर रहे थे। लुई को देखकर उसके पिता ने पूछा––"क्या हुआ?"
"ठहरिये पिताजी, पहले मैं कपड़े बदल आऊँ!"
यह कहकर लुई एक छोटे से कमरे में घुस गया। कुछ क्षण पश्चात् जब वह बाहर निकला तो लड़का न होकर लड़की था। केवल सिर के बालों को छोड़कर जो पुरुषों जैसे थे, अन्य सब प्रकार से वह लड़की थी।
उसकी माता बोल उठी––"विग (नकली बाल) पहन लो बेटी।"
"ओ भूल गई!"
यह कहकर वह पुनः कमरे में चली गई और दूसरे ही क्षण बाहर निकल आई अब उसके बाल जनाने थे। माता के बगल में कुर्सी पर बैठते हुए वह बोली––'ओफ! अब जान में जान आई! मैं तो बहुत डर रही थी कि कहीं जर्मन मुझे पहचान न लें कि यह लड़की है। जान जोखिम का काम था; यदि पहचान लेते तो मैं जीवित न लौट सकती।"...(पूरा पढ़ें)