विकिस्रोत:आज का पाठ/८ सितम्बर
बाल-शिक्षण मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग का एक अध्याय है। इस पुस्तक का प्रकाशन नई दिल्ली के सस्ता साहित्य मंडल द्वारा १९४८ ई. में किया गया था।
"जनवरी १८९७में मैं जब डरबन उतरा तब मेरे साथ तीन बालक थे। एक मेरा १० सालका भानजा, दूसरे मेरे दो लड़के-एक नौ सालका और दूसरा पांच सालका। अब सवाल यह पेश हुआ कि इनकी पढ़ाई-लिखाईका क्या प्रबंध करें।
गोरोंकी पाठशालामें मैं अपने बच्चोंको भेज सकता था; पर वह उनकी मेहरबानीसे और बतौर छूटके। दूसरे हिंदुस्तानियोंके लड़के उनमें नहीं पढ़ सकते थे। हिंदुस्तानी बच्चोंको पढ़ानेके लिए ईसाई-मिशनके मदरसे थे। उनमें अपने बच्चोंको पढ़ानेके लिए में तैयार न था। वहां की शिक्षा-दीक्षा मुझे पसंद न थी । और गुजराती के द्वारा भला वहां पढ़ाई कैसे हो सकती थी ? या तो अंग्रेजी द्वारा हो सकती थी, या बहुत प्रयास करने पर टूटी-फूटी तमिल या हिंदी के द्वारा । इन तथा दूसरी त्रुटियों को दर-गुजर करना मेरे लिए मुश्किल था ।
मैं खुद बच्चों को पढ़ाने की थोड़ी-बहुत कोशिश करता; परंतु पढ़ाई नियमित रूप से न चलती । इधर गुजराती शिक्षक भी मैं अपने अनुकूल न खोज सका!..."(पूरा पढ़ें)